समीर चौगांवकर नई दिल्ली। केन्द्रीय नेतृत्व के निर्देश पर बिहार भाजपा इकाई ने विधानसभा चुनाव में हार के कारणों की विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी है। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण को लेकर बयान को भी एक कारण बताया गया है। भागवत के बयान से आरक्षण के दायरे में आ रहे समुदाय में भय हो गया था जिसे कार्यकर्ता तमाम प्रयासों के बाद भी पिछड़ी जातियों के मन से नहीं निकाल सके। वहीं रिपोर्ट में बिहार भाजपा ने सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और आरा के सांसद आरके सिंह पर पार्टी विरोधी बयानों को लेकर कार्रवाई की मांग की गई है। रिपोर्ट में मजेदार बात यह है कि भाजपा के खाते में आई सीटों का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैलियों और अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी प्रबंधन को दिया गया। ये भी रहे कारण टिकट बंटवारे में देरी और सहयोगी दलों को उनकी क्षमता से ज्यादा सीटें दीं। महागठबंधन का सामाजिक आधार बड़ा व नीतीश कुमार में अति पिछड़ी जातियों-महादलितों का भरोसा। लालू और नीतीश के सहजता से एकजुट होकर लडऩे के मुकाबले भाजपा के सहयोगी दलों के बीच खींचतान रही। सीमांचल में औवेसी और पप्पू यादव भी रहे विफल। जो जातियां लोकसभा में भाजपा के साथ थीं, उसका बड़ा हिस्सा विधानसभा चुनाव में साथ नहीं आया। मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं करने से भी गलत संदेश गया। केन्द्रीय नेताओं की बड़ी संख्या में रैलियों, सभाओं में स्थानीय नेताओं को नजरअंदाज किया। कार्यकर्ता पूरी ताकत से नहीं जुटे और संघ के स्वयंसेवकों का उचित सहयोग नहीं मिला। शत्रुघ्न सिन्हा के बागी बोल और सांसद आरके सिंह के पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप से छवि बिगड़ी। मांझी को गठबंधन में शामिल करना आत्मघाती कदम रहा। मांझी ना तो दलितों को नीतीश से अलग कर सके और न ही पप्पू यादव व भाजपा में आए रामकृपाल यादव लालू के वोट बैंक यादव समुदाय में सेंध लगा सके। जिसके चलते भाजपा को इन लोगों से जिस फायदे की उम्मीद थी वह नहीं मिला।