समाजवादी आंदोलन और फिर राजनीति के भंवर में फंसने से पहले मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के करहल के एक कॉलेज में लेक्चरर के रूप में काम किया है। मुलायम ने अपने पूर्व छात्रों के साथ अब भी संपर्क बनाए रखा है, जिनमें से कुछ अभी भी कभी-कभार उनसे मिलने आते हैं। दिलचस्प बात यह है कि मुलायम हमेशा से ही छात्रों के बीच राजनीति को बढ़ावा देने के हिमायती रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को राजनेताओं के लिए नर्सरी होना चाहिए और हमें छात्रों को राजनीति में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। अनुभवी राजनेता मुलायम सिंह यादव अर्ध-सेवानिवृत्ति में हैं और उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं। वर्तमान में वह सपाइयों में मिशन 2022 को लेकर जोश भर रहे हैं।
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अपने पूर्व छात्रों से नहीं मिलतीं मायावतीबसपा अध्यक्ष मायावती उत्तर प्रदेश में एक और शिक्षक से राजनेता बनी हैं। चार बार के मुख्यमंत्री ने इंद्रपुरी जे.जे.दिल्ली में कॉलोनी में शिक्षक के रूप में अपनी शुरूआत की थी। वह सिविल सेवा परीक्षा के लिए पढ़ रही थी जब वह स्वर्गीय काशीराम से मिलीं और बाद में उन्हें राजनीति में शामिल होने के लिए राजी किया। हालांकि, मायावती अपने पूर्व छात्रों से नहीं मिलती हैं और न ही वह अतीत के साथ अपने संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए इच्छुक हैं। उनके छात्रों में से एक सत्यदेव गौतम ने कहा कि जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बनीं, तो मैंने उनसे मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे पहचानने से इनकार कर दिया, भले ही मैंने अपना परिचय दिया। उन्होंने अपने किसी भी पूर्व छात्र से मिलने की जहमत नहीं उठाई। बसपा नेता के एक सहयोगी ने कहा कि बसपा अध्यक्ष ‘परिसर में गुंडागर्दी’ के खिलाफ हैं और उन्होंने 2008 में छात्र संघ के चुनावों पर प्रतिबंध लगा दिया था। वह ‘भीड़तंत्र’ के खिलाफ हैं जो परिसर पर शासन करती है और बसपा के पास अन्य दलों की तरह एक युवा विंग या एक छात्र विंग भी नहीं है। 2014 के लोकसभा और हाल के 2017 के विधानसभा चुनावों में लगातार दो हार के बाद, मायावती और उनकी पार्टी राज्य में अब बड़ी चुनौती मिल रही है। बावजूद, मायावती का दावा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बड़ी जीत दर्ज करेगी।
एक और शिक्षक जो राजनेता बने वह हैं केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। हो सकता है कि उन्होंने जानबूझकर राज्य की राजनीति से खुद को अलग कर लिया हो, लेकिन वे अपने पूर्व शिक्षक सहयोगियों और छात्रों का खुले दिल से स्वागत करते हैं। राजनाथ सिंह ने राजनीति में आने से पहले मिजार्पुर में भौतिकी के व्याख्याता के रूप में काम किया था उन्होंने 1991 में उत्तर प्रदेश में शिक्षा मंत्री के रूप में अपने पहले निर्णय के साथ हंगामा खड़ा कर दिया था, जब उन्होंने 1992 में नकल विरोधी अधिनियम लाया, जिससे नकल को गैर-जमानती अपराध बना दिया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी शिक्षक से नेता बने थे, जिन्होंने राजनीति में आने से पहले अलीगढ़ में एक स्कूल शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया था। उनके पूर्व सहयोगियों का कहना है कि कल्याण सिंह, जिनका पिछले महीने निधन हो गया, उन्होंने अपने पूर्व सहयोगियों के साथ मधुर संबंध बनाए रखे थे। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह यूपी में लगातार सक्रिय हैं। अब तक वह लखनऊ सहित यूपी की जनता के लिए कई सौगातों की घोषणा कर चुके हैं।