चेन्नई: भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कार्यक्रम में पत्रकारों को बिना ‘आधार’ नहीं मिलेगा प्रवेश! अहम है यह बैठक माना जा रहा है कि नीतीश कुमार इस बैठक में विभिन्न मुद्दों पर अपनी पार्टी का रुख जानना चाहेंगे। बिहार से आ रही खबरों के मुताबिक नीतीश कुमार, आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठजोड़ बहाल करने के इच्छुक हैं, लेकिन इस बारे में उनकी पार्टी में सभी एकमत नहीं हैं। उनकी पार्टी के नेता इसे खारिज कर चुके हैं। बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। भाजपा की एनडीए के घटक दलों से बढ़ती सीटों की लड़ाई से एनडीए के भविष्य को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। ऐसे में यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है।
दबाव बना रहा है जदयू बिहार में जदयू ने उपचुनावों की हार के बाद दबाव बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। वर्तमान में देश के सामने आये लगभग सभी मुद्दों पर जदयू ने भाजपा इतर राय रखी है। यही नहीं, दिल्ली के संग्राम में कूदते हुए जदयू ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का देने की मांग को भी समर्थन दिया है। जानकारों का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनावों में जदयू अपने हिस्से की सीटों में और इजाफा चाहता है। भाजपा जदयू की इन गतिविधियों को गंभीरता से ले रही है। इसलिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने मतभेदों को सुलझाने के लिए 12 जुलाई को पटना में नीतीश कुमार से मिल कर बातचीत करने कार्यक्रम रखा है।
पासवान और नीतीश की मुलाकात भाजपा पर दबाव बनाए रखने की नीति के तहत रामविलास पासवान और नीतीश कुमार शनिवार को दिल्ली में मुलाकात करने वाले हैं। इस बैठक में भाजपा से सीटों की सौदेबाजी पर चर्चा होने की संभावना है। हालांकि रामविलास पासवान 2024 तक नरेंद्र मोदी के पीएम रहने की बात कर चुके हैं लेकिन उनके बेटे और लोकजनशक्ति पार्टी के दूसरे बड़े नेता चिराग पासवान बीच बीच में भाजपा के पार्टी अपनी पार्टी के असंतोष को मुखर रूप से उठाते रहे है।
बिहार का चुनावी समीकरण बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं। पिछले चुनाव में इन 40 सीटों में एनडीए को कुल 31 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इसमें भाजपा को 22, लोजपा को 6 और रालोसपा को 3 सीटों पर जीत मिली थी। नीतीश कुमार ने इन चुनावों में किसी दल के साथ गठबंधन नहीं किया था। उन्हें दो सीटें हासिल हुई थीं।
बुराड़ी कांड: ललित दिन में देखता था हॉरर वीडियो, रात में लगाता था श्मशानों के चक्कर बदला है देश का सियासी माहौल बीते 4 सालों में देश के वर्तमान राजनीयतक परिदृश्य में बहुत से परिवर्तन आये हैं। एक तरफ जहां विपक्षी दलों को भाजपा के बढ़ते प्रभाव से अपना अस्तित्व बचाने की चिंता सताने लगी है तो वहीं अन्य सहयोगी दलों को बीते कुछ समय से उपचुनावों में हुई भाजपा की हार से मोदी विरोधी लहर का डर सता रहा है। सीटों को लेकर भी भाजपा का अपने सहयोगी दलों से 36 का आंकड़ा चल रहा है। ऐसे में सहयोगी दल भी नए विकल्प तलाश रहे हैं। टीडीपी, पीडीपी जैसी पार्टियां एनडीए से बाहर निकल चुकी हैं। वहीं शिवसेना अलग चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है।