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बिहार में बड़े भाई की हैसियत में क्‍यों बने रहना चाहते हैं नीतीश कुमार?

Published: Jul 13, 2018 01:38:29 pm

Submitted by:

Dhirendra

नीतीश-शाह के बीच मुलाकात का दायरा लोकसभा सीटों के बंटवारे तक सीमित न होकर इससे आगे की खिचड़ी पकाने की भी हो सकती है।

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बिहार में बड़े भाई की हैसियत में क्‍यों बने रहना चाहते हैं नीतीश कुमार?

नई दिल्‍ली। अमित शाह की ब्रेकफास्‍ट और डिनर डिप्‍लोमेसी के बाद बिहार में राजनीति की समझ रखने वालों के बीच ये चर्चा आम है कि लोकसभा चुनाव लिहाज से ‘बड़ा भाई’ इतना बड़ा मुद्दा क्‍यों बन गया है? जबकि नीतीश कुमार बखूबी जानते हैं कि पीएम के दौर से 2014 में एनडीए से अलग होने के साथ ही वो बाहर हो चुके हैं। इसलिए लोग यह मानकर चल रहे हैं कि नीतीश-शाह की मुलाकात का दायरा लोकसभा सीटों के बंटवारे तक ही सीमित नहीं हो सकता है। इसके पीछे कुछ और खिचड़ी पक रही है।
चर्चा में कितना है दम
नीतिश-शाह मुलाकात को लेकर पटना के राजनीतिक गलियारों में इस चर्चा आप सहज तरीके से खारिज नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए कि 2014 में पीएम के मुद्दे पर खुद को एनडीए से अलग करने के बाद नीतीश का कद राष्‍ट्रीय राजनीति में पहले की तरह प्रभावी नहीं रहा है। ऐसे में साफ है कि नीतीश केंद्र की राजनीति के लिए इतना बड़ा दाव नहीं खेल सकते कि सीएम की कुर्सी को कुर्बान कर दें। फिर मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल को देखकर वो भलीभांति समझ गए हैं कि मोदी-शाह की बिहार की राजनीति को लेकर मंशा क्‍या हो सकती है? यही वजह है कि वो लोकसभा सीटों के बंटवारे की आड़ में इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि बिहार में 2020 का विधानसभा चुनावों में उनकी हैसियत क्‍या होगी?
इसलिए बड़ा भाई बने रहना चाहते हैं नीतीश
आपको बता दें कि विगत तीन दशकों से नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में प्रासंगिक बने हुए हैं। इसलिए वो कम से कम बिहार में अपना वजूद खोना नहीं चाहेंगे। इस दौरान कई बार उनका राजनीतिक संतुलन बिगड़ा भी है लेकिन ज्‍यादातर मौकों पर वो चुनौतियों से पार पाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन दोबारा से एनडीए में शामिल होने के बाद से राज्य और केन्द्र की राजनीति में उनका कद थोड़ा छोटा हो गया है। यही उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण है। लोकसभा सीटों के बंटवारे के बहाने वो अमित शाह और मोदी से विधानसभा चुनाव में बड़े भाई की भूमिका का सौदा कर लेना चाहते हैं। ताकि 2020 में भी वो बिहार में अपनी हैसियत में बने रह सकें। यही कारण है कि ब्रेकफास्‍ट और डिरन डिप्‍लोमेसी के जरिए वो शाह से बड़ा आश्‍वासन चाहते हैं।
जदयू को ज्‍यादा सीट देना मुश्किल
आपको बता दें कि बिहार में कुल मिलाकर 40 सीटे हैं। इसमें से भाजपा का राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाह के आरएसएलपी के साथ पहले ही 31 सीटों पर कब्जा है। ऐसे में जेडीयू को ज्‍यादा से ज्यादा सीटे देना भाजपा के लिए मुश्किल चुनौती है। इसी चुनौती को नीतीश लोकसभा सीटों के बंटवारे के बहाने विधानसभा चुनाव की बात कर लेना चाहते हैं।
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