राजनीति

तेलंगाना विधानसभा चुनाव: बड़े नेताओं की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर, राष्ट्रीय दलों के साथ क्षेत्रीय पार्टियां भी टक्कर में

तेलंगाना राज्य बनने के बाद विधानसभा के यह चुनाव बहुत ही अहम हैं

नई दिल्लीOct 06, 2018 / 05:52 pm

Siddharth Priyadarshi

तेलंगाना विधानसभा चुनाव: क्या और कैसा होगा चुनावी परिदृश्य, किस पार्टी की है कितनी तैयारी

नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। आयोग ने मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तसीगढ़, मिजोरम के साथ ही तेलंगाना में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। तेलंगाना में 7 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। परिणामों की घोषणा 11 दिसंबर को होगी। इससे पहले इस तरह की खबरें आ रही थीं कि दिल्ली में शीर्ष मतदान अधिकारी 15 नवंबर से पहले तेलंगाना चुनाव आयोजित करने का मन बना रहे हैं। फिलहाल राज्य में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है और इसके साथ ही राज्य में राजनीतिक हलचलें भी तेज हो गई हैं।

तेलंगाना के लिए अहम है चुनाव

तेलंगाना राज्य बनने के बाद विधानसभा के यह चुनाव बहुत ही अहम हैं। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने त्यागपत्र देने के बाद विधान सभा भांग करने की संस्तुति कर दी थी। तेलंगाना में होने वाले चुनावों को लेकर सभी राजनीतिक दलों में बहुत उत्साह है। कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), और तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) आदि सभी पार्टियां इन चुनावों के लिए अपनी तैयारी कर रही हैं। टीआरएस को छोड़कर अन्य सभी पार्टियां तेलंगाना में महाकुटमी या भव्य गठबंधन का निर्माण कर रही हैं। 2014 लोकसभा चुनाव के समय टीआरएस ने 119 विधानसभा की सीटों में से 63 सीट जीती थीं।

दांव पर कांग्रेस की प्रतिष्ठा

इन चुनावों में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है। यदि आगामी चुनावों में कांग्रेस का भव्य गठबंधन विफल रहता है, तो कांग्रेस की प्रतिष्ठा के लिए बड़ा कुठाराघात होगा। इसके परिणामस्वरूप वरिष्ठ कांग्रेस और टीडीपी नेताओं के राजनीतिक करियर का अंत हो सकता है। हैदराबाद के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि लगभग 40 पूर्व कैबिनेट मंत्री हैं जिनके राजनीतिक करियर खात्मे के कगार पर हैं।” राजनीतिक पंडित मानते हैं कि तेलंगाना के राजनीतिक पटल पर टीडीपी का उदय आश्चर्य में डाल सकता है। लेकिन टीडीपी का तेलंगाना में कोई खास जनाधार नहीं है। हालांकि महागठबंधन के चार विपक्षी दलों के बीच सीट साझा करने की घोषणा नहीं की गई है लेकिन यह तय है कि टिकट, जिताऊ उम्मीदवार को ही दिया जाएगा। राजनीतिक विश्लेषक टीजेएस की संभावनाओं के बारे में बहुत उम्मीद नहीं कर रहे हैं।

भारी है टीआरएस का पलड़ा

विधानसभा चुनावों में टीआरएस का पलड़ा भारी है। माना जा रहा है कि टीआरएस की आसान बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव जीतने की संभावना है, क्योंकि विपक्ष में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो भीड़ खींचने वाला हो। लेकिन अगर गठबंधन ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में कोई लोकप्रिय व्यक्ति घोषित कर दिया तो यह एक आश्चर्यजनक कदम होगा और इस कदम से टीआरएस पर कुछ दबाव पड़ सकता है। चंद्रेशखर राव की लोकप्रियता और उनकी साफ़ छवि का फायदा उनकी पार्टी को मिलता हुआ दिख रहा है।

ओबीसी वोटों पर पार्टियों की नजर

पिछड़े वर्ग के संगठनों और विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले तेलंगाना में इस समुदाय के लिए एक अलग पार्टी के गठन पर विचार कर रहे हैं। पिछड़ा वर्ग संगठन को लॉन्च करने के बारे में विभिन्न राजनीतिक दलों के समुदाय नेताओं में इस बातचीत चल रही है। उधर कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग के नेताओं के लिए प्रमुख पदों का वादा किया है। पिछड़े वर्गों की वोट चुनावों पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। बता दें कि पिछड़े वर्ग की तेलंगाना में लगभग 50% आबादी है। राज्य में पिछड़े वर्ग समुदाय के सबसे प्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त चेहरों में से एक तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के विधायक आर कृष्णिया हैं। लेकिन वह नायडू के बहुत करीबी हैं और इस बात की संभावना बहुत कम है कि वह अपने पार्टी छोड़ पिछड़ों के लिए पार्टी बनाएंगे।

गेम चेंजर साबित होंगे ओवैसी ?

अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिममीन के असदुद्दीन ओवैसी को भूमिका को भी इन चुनावों में नजरंअदाज नहीं किया जा सकता। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष केसीआर ने हाल में अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) एक दोस्ताना पार्टी कहा था। हालांकि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने फिर से टीआरएस के साथ गठबंधन की संभावना से इंकार कर दिया हैए लेकिन इस बात की संभावना प्रबल है कि चुनाव के बाद ओवैसी टीआरएस के साथ मिल सकते हैं। एआईएमआईएम की पिछली विधानसभा के दौरान सात विधायक थे। एक तरफ ओवैसी टीआरएस प्रमुख की प्रशंसा करते हैं तो दूसरी तरफ उनके भाई अकबरुद्दीन खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा कर रहे हैं।

भाजपा और तृणमूल की आस

तेलंगाना चुनाव में भारतीय जनता पार्टी राज्य में अपने लिए अच्छी स्थिति का दावा कर रही है। हालांकि पार्टी के पास इस समय राज्य में कोई जाना पहचाना चेहरा नहीं है लेकिन पार्टी पीएम मोदी के नाम के सहारे नैया पार लगने की आस लगाए हुए है। राज्य के वर्तमान राजनीतिक सूरते हाल को देखकर ऐसा नहीं लगता कि पार्टी किसी अन्य दल के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन करने की स्थिति में है। हालांकि बीच में टीआरएस के चंद्रशेखर राव की पीएम मोदी से मुलाकात के बाद इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि दोनों दलों के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं। बता दें कि पीएम से मिलने के कुछ ही दिन के बाद राव ने विधानसभा भंग कर राज्य में नए चुनाव कराने की सिफारिश कर दी थी।
तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी का हालांकि तेलंगाना में कोई जनाधार नहीं है, लेकिन 2019 में भाजपा के खिलाफ प्रस्तावित महागठबंधन में रूचि होने के कारण ममता बनर्जी के लिए यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। अगर राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन जीत हासिल करता है तो यह ममता बनर्जी के लिए एक अच्छी खबर होगी और वह राष्ट्रव्यापी महागठबंधन बनाने के अपने मिशन को आगे बढ़ाने के काम में जुट जाएंगी।

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