विपक्ष को कमजोर करने की रणीनीति पर काम शुरू इन बातों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने सबसे पहले बुधवार को मंत्रिमंडल का विस्तार किया और आज कैबिनेट की पहली बैठक में ही किसान आंदोलन और कोरोना महामारी पर अहम फैसले लेकर विपक्ष की सियासी रणनीतियों को कमजोर करने का काम किया है। ऐसा इसलिए कि सभी जोड़तोड़ के बाद भी विपक्ष के हाथ लगे इन सियासी हथियारों से भाजपा पार नहीं पा सकी है, जो पार्टी के लिए आज भी सबसे बड़ी चुनौती है।
कोरोना संकट और किसान आंदोलन को अवसर में बदलने की मंशा दरअसल, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कोरोना महामारी का नियंत्रित न होना और किसान आंदोलन का लंबा खिचना विपक्ष के हाथ के केंद्र के खिलाफ बहुत बड़ा हथियार है। फिर दो साल के अंदर दिल्ली, बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव में भाजपा को इच्छित सफलता न मिलना भी विपक्ष के नैतिक मनोबल को मजबूत करने वाला है। केरल और तमिलनाडु में भाजपा इस बार भी पांव फैला नहीं पाई। अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होना है। केंद्र की सत्ता में बने रहने के लिए यूपी सबसे अहम राज्य है। इसके साथ हि 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को ज्यादा कुछ हासिल होने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में 2024 लोकसभा चुनाव तक माहौल अपने हाथ न निकल जाए, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए मोदी सरकार ने अपनी भावी योजनाओं पर अभी से अमल करना शुरू कर दिया है।
एकदम से 1,23,123 करोड़ फंड की घोषणा इस योजना के तहत मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कैबिनेट की पहली बैठक में केंद्र सरकार ने दो अहम फैसले लिए हैं। इन फैसलों का मकसद भले ही देशभर में एपीएमसी मंडियों को मजबूत करना और कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए हेल्थ इमरजेंसी फंड करना है। पहले फैसले के तहत मंडियों के जरिए किसानों तक एक लाख करोड़ रुपए पहुंचाने की है। तो दूसरी फैसले के तहत कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए 23,123 करोड़ रुपए का फंड जारी करना है। ताकि कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए जरूरी कोरोना बेड, आईसीयू बेड, देशभर में आक्सीजन की आपूर्ति बिना रोकटोक जारी रखना शामिल है। अगर केंद्र सरकार इस मिशन में सफल हुई तो किसान आंदोलन और कोरोना महामारी जैसा मुद्दा विपक्ष के हाथ से निकल सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसे केंद्र सरकार अपनी सफलता के रूप में भुनाएगी।
प्रसाद, जावड़ेकर, हर्षवर्धन और निशंक की विदाई पूर्व केंद्रीय कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद, पूर्व पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर,पूर्व शिक्षा मंत्री रमेख पोखरियाल निशंक और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के इस्तीफे को हजम करना भी विपक्ष के लिए आसान नहीं है। विपक्षी नेताओं को लगता है कि इन मंत्रियों का इस्तीफा लेकर केंद्र सरकार अहम समस्याओं का जवाब देने से मुंह मोड़ना चाहती है। बता दें कि ट्विटर विवाद को लेकर प्रसाद पर अंगुल उठे हैं, कोरोना महामारी नियंत्रण में नाकामी को विपक्ष हर्षवर्धन की जगह मोदी के नेतृत्व को ज्यादा जिम्मेदार मानता है। इसी तरह शिक्षा संस्थानों से जुड़े लोग भी केंद्र की नीतियों से नाराज हैं। मोदी सरकार के सात साल के कार्यकाल में उच्च शिक्षा संस्थानों में पद खाली होने के बावजूद भर्तियां नहीं हुई हैं। नई शिक्षा नीति 2020 को लेकर न केवल सियासी पार्टियां बलिक् बुद्धिजीवियों का बहुत बड़ा तबका केंद्र से नाराज है। पर्यावरण के मुद्दे पर भी मोदी सरकार पर आरोप लगते रहे हैं। इन मंत्रालयों का जिम्मा संभाल रहे मंत्रियों का इस्तीफा लेने से विपक्ष का हमला पहले की तुलना कमजोर होना तय है। ऐसा इसलिए कि इन मंत्रालयों का नेतृत्स अब नए नेताओं को सौंप दिया गया है।