क्या है जनसंख्या नियंत्रण बिल इस बिल में दो या इससे अधिक बच्चों होने पर माता-पिता को सरकारी सुविधाओं से वंचित रखने की सिफारिश की गई है। इसका उल्लघंन करने पर सरकारी नौकरी से हटाने, मतदान के अधिकार से वंचित करने, चुनाव लड़ने और राजनीतिक पार्टी का गठन करने के अधिकार से वंचित करने जैसे प्रावधान लागू करने की बात कही गई है। इसके उलट एक बच्चे वाले माता-पिता को सरकारी नौकरी में वरीयता जैसी सुविधाएं देनी की सिफारिश की गई है।
यह भी पढ़ेंः केंद्र सरकार की दो टूक: किसी को केवल दो बच्चे पैदा करने के लिए नहीं कर सकते मजबूर यूपी का जनसंख्या नियंत्रण प्रस्ताव चर्चा में इसी साल 11 जुलाई यानि विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की जनसंख्या नीति 2021-2030 का अनावरण किया था। इसके साथ ही सूबे की जनता से 19 जुलाई तक इस प्रस्ताव पर सुझाव मांगे थे। बता दें कि इस बिल का उद्देश्य यूपी में 2026 तक जन्म दर को को 2.1 प्रति हजार जनसंख्या और 2030 तक 1.9 तक लाना है. वर्तमान में, राज्य में जन्म दर 2.7 प्रति हजार है।
गौरतलब है कि यूपी विधानसभा का मानसून सत्र 17 अगस्त से शुरू हो रहा है। उम्मीद है कि सरकार सत्र में इस बिल को पेश करेगी। अगर यह एक्ट लागू हुआ तो प्रदेश में दो से अधिक बच्चे पैदा करने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन और प्रमोशन का मौका नहीं मिलेगा। इसके साथ ही दो से अधिक बच्चे वालों को 77 सरकारी योजनाओं व अनुदान से भी वंचित रखने का प्रावधान है। अगर यह लागू हुआ तो एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों स्थानीय निकाय में चुने जनप्रतिनिधियों को शपथ पत्र देना होगा कि वह इसका उल्लंघन नहीं करेंगे। कानून लागू होते समय उनके दो ही बच्चे हैं और शपथ पत्र देने के बाद अगर वह तीसरी संतान पैदा करते हैं तो प्रतिनिधि का निर्वाचन रद करने व चुनाव ना लडऩे देने का प्रस्ताव होगा। इतना ही नहीं सरकारी कर्मचारियों का प्रमोशन तथा बर्खास्त करने तक की सिफारिश है।
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राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में पहले से ही दो बच्चों की नीति लागू है। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के अनुसार सरकारी नौकरी के मामले में जिन उम्मीदवारों के दो या दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें नियुक्ति का पात्र नहीं माना जाता है। मध्य प्रदेश साल 2001 से ही दो बच्चों की नीति का पालन कर रहा है। महाराष्ट्र सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) निगम, 2005 के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को राज्य सरकार के किसी भी पद हेतु अयोग्य घोषित किया गया है। वहीं साल 2005 में सरकार द्वारा गुजरात स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन किया गया था। इस बदलाव के बाद दो से अधिक बच्चे वाले उम्मीदवार को पंचायत, नगर पालिकाओं और नगर निगम के निकायों का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में पहले से ही दो बच्चों की नीति लागू है। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के अनुसार सरकारी नौकरी के मामले में जिन उम्मीदवारों के दो या दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें नियुक्ति का पात्र नहीं माना जाता है। मध्य प्रदेश साल 2001 से ही दो बच्चों की नीति का पालन कर रहा है। महाराष्ट्र सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) निगम, 2005 के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को राज्य सरकार के किसी भी पद हेतु अयोग्य घोषित किया गया है। वहीं साल 2005 में सरकार द्वारा गुजरात स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन किया गया था। इस बदलाव के बाद दो से अधिक बच्चे वाले उम्मीदवार को पंचायत, नगर पालिकाओं और नगर निगम के निकायों का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है।