दरअसल बीते दो दशकों से पुतिन रूसी राजनीति के आकाश पर छाए रहे हैं। रूस का मतलब पुतिन और पुतिन का मतलब रूस है। बीते कई सालों से चुनावों में लगातार पुतिन पर भरोसा जता रहे रूसी नागरिकों का भी यही मानना है कि दुनिया की किसी भी सुपरपॉवर (super power) में फिलहाल पुतिन को चुनौती देने का साहस नहीं है। यही वजह है कि लोग पुतिन को किसी भी कीमत पर सत्ता में देखना चाहते हैं। मौजूदा कार्यकाल के 2024 में खत्म होने के बाद भी उन्होंने फिर से चुनाव में भाग लेने की संभावना को नकारा नहीं है। अगर वे और दो बार चुनाव लड़ते हैं तो साल 2036 तक देश के राष्ट्रपति बने रह सकेंगे। हाल ही मास्को में आयोजित 75वीं विक्टरी परेड के एक दिन बाद देश में जनमत संग्रह (public opinion) कराया जाना तय किया गया है। गौरतलब है कि रूस हर साल दूसरे विश्व युद्ध में मारे गए नाजी जर्मनी पर सोवियत विजय की वर्षगांठ मनाता है।
जनवरी में पुतिन ने संविधान में अहम बदलाव करने का प्रस्ताव दिया था। उनके इसी प्रस्ताव पर देशभर में मतदान किया जाना है। संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सबकुछ पुतिन के हिसाब से हुआ तो सत्ता की शक्ति राष्ट्रपति की जगह संसद के पास ज्यादा होगी और वो छह साल के दो और कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ सकेंगे। यह जनमत संग्रह और संभावित संविधान संशोधन दरअसल पुतिन की महत्त्वकांक्षा और विश्व के शीर्ष लीडर (world leader) के रूप में खुद को स्थपित करने की एक सोची-समझी योजना की पैदाइश है। वर्ष 2000 के बाद विश्व पटल पर जिस दमखम के साथ पुतिन ने कदम रखा है वह करिज्मा आज भी बरकरार है। अगर बीते दो दशकों की वैश्विक राजनीति पर एक नजर डालें तो व्लादिमिर पुतिन निस्संदेह एक बड़ा नाम बनकर उभरे हैं। 1999 में प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त होने के बाद 2000 से 2008 तक वे राष्ट्रपति के पद पर चुने गए। इसके बाद 2012 से अब तक राष्ट्रपति के तौर पर वे रूस का आइना बने हुए हैं। पुतिन ने 2024 में चुनाव लडऩे पर अभी भले इही कुछ न कहा हो लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने अब तक इसकी पुष्टि भी नहीं की है। रूसी नागरिकों का समर्थन भी पुतिन को हासिल है जो साल 2018 में हुए चुनावों में पुतिन को मिले 76 फीसदी से अधिक वोटों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है।