दरअसल, 2018 में दोनों राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर का फासला लगभग बराबर था। दोनों राज्यों में हुए कांटे के मुकाबले के दौरान भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी। इससे सबक लेते हुए भारतीय जनता पार्टी ने इस बार अपने प्रदर्शन को सुधारने की रणनीति बनाई है। इसके तहत 51 प्रतिशत वोट शेयर का टारगेट सेट तय किया गया है। भाजपा की तरफ से मध्य प्रदेश के प्रभारी पी मुरलीधर राव और राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह ने 51 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने के लिए खाका तैयार किया है। हर बूथ पर केंद्रीय सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान कर उन्हें पार्टी से जोड़ने की तैयारी चल रही है।
मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भाजपा का खास फोकस रहेगा। 2018 में मध्य प्रदेश में आदिवासियों की नाराजगी के कारण भाजपा को सीटों का नुकसान हुआ था। कुल 47 आदिवासी सीटों में से सिर्फ 16 ही भाजपा जीत पाई थी, जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 31 आदिवासी सीटें जीतीं थीं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस को लगभग 41 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 114 सीटें और भाजपा को 109 सीटें मिलीं थीं। राजस्थान की बात करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 38.77 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 73 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस ने 39.30 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 100 सीटें जीतीं थीं।