इस बिल के पेश होने पर राज्य सभा में काफी हंगामा हुआ और इस हंगामे के बीच वोटिंग कराई गई, जिसके बाद बहुमत से लोकसभा अध्यक्ष ने इसे पास कर दिया। इससे पहले समाजवादी पार्टी के सांसद विशंभर प्रसाद निषाद और YSR कांग्रेस पार्टी के सांसदों ने इस बिल का विरोध करते हुए राज्यसभा से वॉकआउट किया। निषाद ने इस बिल को असंवैधानिक करार देते हुए मांग की कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए।
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ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (BJD) के सांसद प्रसन्ना आचार्य ने भी इस बिल का विरोध करते हुए राज्यसभा से वॉकआउट कर दिया। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी ने इस बिल का समर्थन नहीं करने का फैसला लिया है।
क्या है इस बिल में?
आपको बता दें कि GNCTD बिल के अनुसार, अब दिल्ली में चुनी हुई सरकार से अधिक ताकत उपराज्यपाल के पास होगी। यानी साधारण शब्दों में कहें तो दिल्ली सरकार को कोई भी कानून बनाने या कोई काम करने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी आवश्यक है। संशोधित बिल के मुताबिक, दिल्ली सरकार को विधायिका से जुड़े फैसलों पर उपराज्यपाल से 15 दिन पहले और प्रशासनिक मामलों पर करीब 7 दिन पहले मंजूरी लेनी होगी।
लोकसभा में बिल पेश करते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा था कि यह बिल लाना जरूरी हो गया है। क्योंकि दिल्ली सरकार का स्टैंड कई मुद्दों पर स्पष्ट नहीं रहा है। इनमें से कुछ मामले अदालत में भी चल रहे हैं। ऐसे में अब इस तरह के कानून के जरिए उपराज्यपाल को अधिक ताकत दिया गया है, ताकि प्रशासन के कामकाज को आसान और बेहतर किया जा सके। उन्होंने कहा कि इस बिल को राजनीतिक बिल नहीं कहना चाहिए।
रेड्डी ने आगे कहा था कि 1996 से केंद्र और दिल्ली सरकार के संबंध बेहतर रहे हैं, लेकिन 2015 के बाद से कई ऐसे मुद्दे सामने आए हैं, जो चिंताजनक है।