देश की राजनीति के हर मोड़ पर अमर सिंह ने अपना चोला बदलने में माहिर रहे हैं। यानी वो अपने सियासी करियर में अलग-अलग टोपियों में दिखे हैं। हाल ही में रामपुर में अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह चमकदार काली कराकुल टोपी पहने दिखे। राज्यसभा के सदस्य अमर सिंह कई वर्षों या कहें शायद करीब एक दशक बाद नवाबों के शहर में लौटे थे। वह 2009 के आम चुनाव के दौरान रामपुर आए थे। तब वह समाजवादी पार्टी में थे। नेताजी की पार्टी में उस समय उनका बड़ा बोल-बाला हुआ करता था। वह दौर अमर-मुलायम की जुगलबंदी का था। सपा में अमर सिंह की ऐसी धाक थी कि उन्होंने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी और रामपुर के धाकड़ नेता माने जाने वाले आजम खान को पार्टी में किनारे लगा दिया। इतना ही नहीं रामपुर में जयाप्रदा को मैदान में उतारकर उन्होंने आजम को राजनीतिक मात दी थी। इस बार भी वो उसी इतिहास को दोहराना चाहते हैं।
इस बार रामपुर के हालात कुछ अलग हैं। अमर सिंह को मुलायम के बेटे अखिलेश यादव ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुके हैं। आजम खान वापस सपा में अपनी मजबूत पकड़ बना चुके हैं। पांच सालों तक चली अखिलेश यादव की सरकार में आजम खान मंत्री रहे और उनकी पत्नी अब सपा से राज्यसभा की सदस्य जबकि बेटा विधायक है। इतने सालों बाद रामपुर लौटे अमर सिंह की कोशिश पुराना रुआब दोबारा हासिल करने की कोशिश है। इस बार भी आजम खान के खिलाफ यहां उनकी रणनीति 2009 जैसी ही दिखती है। रामपुर का जिक्र करते हुए ये बात भी बता दें कि जो अमर आज आजम के दुश्मन बने हुए हैं उन्होंने ही 2004 में अभिनेत्री जया प्रदा को रामपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने का न्योता दिया था। तब सपा को कांग्रेस उम्मीदवार बेगम नूर बानो के खिलाफ एक जाने-माने चेहरे की जरूरत थी, जिसमें बॉलीवुड अभिनेत्री इस खांचे में बिल्कुल फिट बैठती दिखीं। जया प्रदा ने उस चुनाव में जीत दर्ज की और इस तरह आजम खान ने रामपुर के नवाब खानदान को जमीनी हकीकत से रूबरू कराया। लेकिन आजम और जया प्रदा के रिश्ते जल्द ही तल्ख होते दिखे। जया प्रदा भी कुनबा बदलते हुए सुरक्षा के लिए अमर सिंह के शरण में जा पहुंचीं। दूसरी तरफ आजम खान ने 2009 के आम चुनाव से ठीक पहले सपा से नाता तोड़ लिया। इसके बाद जया प्रदा एक बार फिर रामपुर से बेगम नूर बानो के खिलाफ खड़ी हुईं। इस बार उनके सियासी अभियान की कमान अमर सिंह ने अपने हाथों ले रखी थी। इस चुनाव को अमर सिंह और आजम खान के बीच लड़ाई के रूप में देखा गया। उस समय अमर सिंह तब खान के विरोधी सभी ताकतों को साथ लाने में कामयाब रहे थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में जया प्रदा ने सभी सियासी पंडितों को चौंकाते हुए नूर बानो को पटखनी दी थी। इसे रामपुर से आजम की हार मानी गई थी। लेकिन 2019 के लिहाज से देखें तो हालात काफी बदल चुके हैं। शायद यही वजह से आजम खान ने पिछले कुछ दिनों से चुप्पी साध रखी है।