script#KarSalaam: गणतंत्र घोषित होने के 26 साल बाद भारत बना धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र | Republic day 2018 after 26 year indian republic country become secular | Patrika News

#KarSalaam: गणतंत्र घोषित होने के 26 साल बाद भारत बना धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र

Published: Jan 25, 2018 04:54:00 pm

Submitted by:

Dhirendra

संविधान लागू होने के 26 वर्षों में परिस्थितियां इस कदर बदलीं की 42वें संविधान संशोधन के जरिए हमारा देश धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र हो गया।

indian constitution

Indian constitution

नई दिल्‍ली. दरअसल, किसी भी देश का संविधान वहां का लिखित और मौलिक दस्‍तावेज होता है। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। उसी दिन से भारत एक गणतांत्रिक राज्‍य के रूप में उभरकर सामने आया। लेकिन 26 साल बाद भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र भी बन गया। हालांकि संविधान लागू होने के पहले दिन से ही यह तय था कि राज्‍य का कोई अपना धर्म नहीं होगा। परंतु 26 वर्षों के अंदर देश की परिस्थितियां कुछ इस कदर बदलीं कि पीएम इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 42वें संविधान संशोधन के जरिए 1976 में धर्मनिरपेक्ष शब्‍द को पहली बार प्रस्‍तावना में जोड़ दिया गया। तब से विश्‍व पटल पर भारत की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र की भी हो गई। हालांकि अब धर्मनिरपेक्ष के स्‍थान पर पंथनिरपेक्ष शब्‍द उपयोग होने लगा है।
धर्म निजी मामला क्‍यूं
धर्मनिरपेक्षता से आशय सभी धर्मों के बीच धार्मिक सहिष्णुता और सम्मान की समानता है। इसलिए भारत का अपना एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। हर व्यक्ति को उपदेश, अभ्यास और किसी भी धर्म वे चुनाव प्रचार करने का अधिकार है। सरकार का धर्म यही माना गया कि वो सभी धर्मों के साथ समान व्‍यवहार करे। वो भी किसी एक धर्म या दूसरों को कोई महत्व देने के बिना। यही कारण है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष (पंथ निरपेक्ष) राज्य हैं। इस हिसाब से धर्म एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का निजी मामला है, इसे उन पर छोड़ देना चाहिए।
धार्मिक अस्‍था मौलिक अधिकार का सवाल
आपको यह बता दूं कि धर्मनिरपेक्षता शब्द का प्रयोग भारतीय संविधान के किसी भाग में नहीं किया गया हैं। लेकिन संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद हैं जो भारतीय राज्य में धर्मनिरपेक्ष प्रवृति के साथ जुड़े है। संविधान के भाग तीन में यह अनुच्छेद 25 से 28 तक नागरिकों के मूल अधिकार के रूप में शामिल है। अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने या फैलाने का अधिकार है। अनुच्छेद 26 धार्मिक संस्थाओं की स्थापना का अधिकार देता हैं । अनुच्छेद 27 के अंतर्गत किसी नागरिक को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या पोषण के लिए कर देने के लिए बाध्य नहीं करेगा। अनुच्‍छेद 28 के तहत राज्य की आर्थिक सहायता से संचालित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नही दी जाएगी। इसलिए संविधान में भारतीय राज्य का कोई धर्म घोषित नहीं किया गया है और न ही किसी खास धर्म का समर्थन किया गया हैं ।
धार्मिक निष्‍पक्षता है धर्मनिरपेक्षता
भारत के दूसरे राष्‍ट्रपति और दार्शनिक डॉ. एस धाकृष्णन ने 1956 में दिए भाषण में धर्मनिरपेक्षता के बारे में कहा था कि जब भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य कहा जाता है, तो इसका अर्थ यह नहीं होता है कि हम व्‍यावहारिक जीवन में धर्म की महत्ता को स्‍वीकार नहीं करते धर्महीनता को प्रोत्साहित करते हैं। इसका मतलब यह भी नहीं है कि धर्मनिरपेक्षता स्वंय एक सकारात्मक धर्म बन जाता है या राज्य देवी पूर्वाग्रहों का अनुमान लगाता है। हम चाहते है कि किसी एक धर्म विशेष को दर्जा न दिया जाए और धार्मिक निष्पक्षता के इस दृष्टिकोण के हिसाब से भारत राष्ट्रीय व अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी भूमिका अदा करे।
संविधान का अविभाज्‍य अंग
कानूनी पुस्‍तकों के लेखक राजीव भार्गव का मानना है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा अमरीका की तरह धर्म और राज्य के बीच अलगाव पर आधारित नहीं है। भारत की धर्मनिरपेक्षता न तो पूरी तरह धर्म के साथ जुड़ी है और न ही इससे पूरी तरह तटस्थ है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद निर्णय में धर्मनिरपेक्षता को भारत की आधारभूत संरचना का भाग माना है।
क्‍यूं जोड़ना पड़ा
संवैधानिक प्रावधानों के जानकार राजेश भारती का कहना है कि जब देश में संविधान लागू हुआ उस समय धर्मनिरपेक्षता शब्‍द प्रस्‍तावना का हिस्‍सा नहीं था। सभी धर्मों, जातियों, समुदायों व सम्‍प्रदायों की धार्मिक आस्‍था को मौलिक अधिकारों के तहत संरक्षित रखा गया था। लेकिन 1971 आते-आते देश का राजनीतिक परिदृश्‍य बदलने लगा। इसी साल बांग्‍लादेश का स्‍वंतत्र राष्‍ट्र के रूप में उदय हुआ। यानि भारत के ईस्‍ट और वेस्‍ट दोनों तरफ मुस्लिम राष्‍ट्र का अस्तित्‍व में होने से बहुसंख्‍यक हिंदुओं के बीच एक नई सोच का उदय हुआ। इस सोच को उभारने में भारत का धार्मिक आधार पर एक संप्रभु राष्‍ट्र के रूप में उदय ने अहम भूमिका निभाई । आपातकाल और जेपी आंदोलन के समय जन संघ भी इंदिरा गांधी के खिलाफ गठबंधन राजनीति में शामिल हो गया था। राजनीतिक वातावरण पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर होने लगी थी। क्षेत्रीय दलों का उभार होने लगा और वोट बैंक की राजनीति जोर पकड़ने लगी। ऐसे में तत्‍कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने बदलते राजनीतिक परिदृश्‍य को देखते हुए भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र घोषित कर अल्‍पसंख्‍यकों को आश्‍वस्‍त किया कि वो आज भी भारत में उतने ही सुरक्षित जितना कि पहले हुआ करते थे। ऐसा 42वें संविधान संशोधन के जरिए किया गया। यह घटना भारतीय राजनीति पर अमिट प्रभाव छोड़ने वाला साबित हुआ जिससे आज भी भारत उबर नहीं पाया है।
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