‘नाम अनेक, लेकिन चेहरा एक’ केन्द्र से लेकर राज्य तक जहां-जहां भाजपा की सरकार बनी, सबमें एक बात जरूर कॉमन है, वो है संघ। या यूं कहें कि भाजपा में सरकार बनाने से लेकर चेहरा तक फाइनल करने में संघ की बड़ी भूमिका होती है। आखिर हो भी क्यों न, क्योंकि पार्टी नेतृत्व से लेकर पीएम मोदी तक सभी संघी हैं। लिहाजा, जब भी सरकार बनाने की बात आती है या उम्मीदवार का नाम फाइनल किया जाता है, तो उसमें संघ की भूमिका बड़ी होती है। गोवा में भी यही हुआ। मनोहर पर्रिकर के गुजर जाने के बाद गोवा में नये मुख्यमंत्री की तलाश शुरू हुई। देश के मन में एक ही सवाल था कि प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? जवाब और नाम तो भाजपा को शायद पहले से ही पता था। लेकिन बैठकें, चर्चा और मंथन कर, राजनीति की रस्म अदायगी करना पार्टी के लिए बेहद जरूरी था।
यूं ही नहीं बनी प्रमोद सावंत के नाम पर सहमति रविवार देर रात चर्चा शुरू हुई, पार्टी हाईकमान ने इसकी जिम्मेदारी केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को दी। बैठकें शुरू हुईं और अलग-अलग नामों को लेकर मीडिया में पार्टी सुर्खियां बटोरने लगी। सबसे पहला नाम सामने आया केन्द्रीय मंत्री श्रीपद नाईक का, कुछ देर नाईक के नाम पर मीडिया में चर्चा हुई, माहौल बना। लेकिन, सोमवार सुबह होते-होते नाईक रेस से बाहर हो गए। सोमवार सुबह एक बार फिर बैठक शुरू हुई, अब नाम सामने आया गोवा भाजपा अध्यक्ष विनय तेंदुलकर का। थोड़ी देर तेंदुलकर के नाम पर भी चर्चा हुई, मीडिया में माहौल बना। लेकिन, वो भी रेस से बाहर हो गए। दोपहर होते-होते दो नए नाम सामने आए, विधानसभा स्पीकर प्रमोद सांवत और गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे का। शाम हो गई, दोनों नामों पर चर्चा होती रही। लेेकिन, शाम सात बजे के बाद यह लगभग साफ हो गया कि गोवा के अगले मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत ही होंगे। रात नौ बजे इसकी औपचारिक घोषणा कर दी गई। सबके मन में एक ही सवाल उठा कि प्रमोद सांवत के नाम पर ही मुहर क्यों? जवाब, वो संघी हैं। भाजपा के 12 विधायकों में से इकलौते संघी विधायक। लिहाजा, प्रमोद सांवत का सीएम बनना तो पहले से ही तय था। क्योंकि, इतिहास के मुताबिक, भाजपा शासित राज्यों में सीएम बनने के लिए ‘संघी’ होना अनिवार्य ही नहीं बल्कि जरूरत भी है। क्योंकि, आप दूसरे राज्यों पर गौर करें तो जहां-जहां भाजपा ने अपनी सरकार बनाई है, किसी संघी को ही ‘सिंहासन’ पर बैठाया गया है।