सोमवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इन पांच कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि को 19 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी थी। पीठ ने कहा कि वह दो दिन बाद इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य की याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई करेगी। पीठ ने कहा था कि प्रत्येक आपराधिक जांच आरोपों पर आधारित होती है। हमें देखना है कि क्या इनमें कोई साक्ष्य हैं। सबसे पहले तो हमें सामग्री पर गौर करना होगा। यदि हमने पाया कि सामग्री गढ़ी गई है तो हम विशेष जांच दल गठित करेंगे। हम महाराष्ट्र पुलिस की सुने बगैर और सामग्री पर गौर किए बगैर उनके खिलाफ निर्णय कैसे कर सकते हैं। हम जांच एजेंसी के तथ्यों पर गौर फरमाएंगे।
सोमवार को सुनवाई शुरू होते ही केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल मनिंदर सिंह और तुषार मेहता ने रोमिला थापर और अन्य की याचिका का विरोध किया। उनका कहना था कि ऐसी कौन सी सामग्री थी जिसने यह एहसास पैदा किया कि निचली न्यायिक अदालतें आरोपियों को नहीं सुनेंगी। इस पर पीठ ने कहा कि उसने उनकी स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए ही उन्हें संरक्षण प्रदान किया है और यह निचली अदालतों में उनकी याचिकाओं का निपटारा होने तक जारी रहेगी। पीठ ने कहा कि हम स्वतंत्रता के आधार पर मामले पर विचार करते हैं। स्वतंत्र जांच जैसे मुद्दे बाद के चरण में आते है। आरोपियों को नीचे से राहत प्राप्त करने दें। इस बीच हमारा अंतरिम आदेश जारी रह सकता है।
अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल मनिंदर सिंह ने पिछले सुनवाई के दौरान कहा था कि जहां तक नक्सलवाद की समस्या का संबंध है तो यह अधिक बड़ी समस्या है। यह पूरे देश में फैल रही है। इसी वजह से हम इसमें हस्तक्षेप कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया तो यह एक खतरनाक परंपरा स्थापित करेगी। ऐसा मामला जिस पर निचली अदालतों ने विचार नहीं किया है और ऐसा कौन सा पहलू है जिसने उनके दिमाग में यह संदेह पैदा किया कि निचले न्यायिक मंच उन्हें नहीं सुनेंगे।
अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बारे में याचिकाकर्ताओं की अपनी सोच से इतर उनके खिलाफ पर्याप्त सामग्री है। उन्होंने कहा कि यह असहमति नहीं है। यह गंभीर अपराध है। आप अभी शायद संतुष्ट नहीं हों परंतु लैपटाप, कम्प्यूटर, हार्ड ***** से मिले साक्ष्य से पता चलता है कि वे संलिप्त थे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र और महाराष्ट्र की आपत्तियों को किताबी करार देते हुए कहा कि आरोपों में दम नहीं है। शीर्ष अदालत द्वारा इसका संज्ञान लिए जाने के बाद से निचली अदालत में कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपना मामला सामने रखने दिया जाए क्योंकि यह न्यायालय के अंत:करण को भी झकझोर देगा।
आपको बता दें कि पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित अलगार परिषद की बैठक के बाद पुणे के भीमा-कोरेगांव में हिंसा की घटनाएं हुईं थीं। घटना को लेकर गठित जांच टीम ने इस सिलसिले में बीते 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर समेत प्रभात पटनायक, माजा दारुवाला, सतीश देशपांडे और देवकी जैन जैसे सामाजिक कार्यकर्ता इन गिरफ्तारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उनका कहना था कि सरकार से असहमति के चलते ये गिरफ्तारियां हुई हैं।