2014 में नरेंद्र मोदी का पीएम बनने के बाद से लोकसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं। इनमें से भाजपा को केवल पांच सीटों पर ही जीत मिली। हाल ही में चार लोकसभा और 10 विधानसभा उपचुनाव के परिणामों ने भाजपा नेतृत्व को चौकाने का काम किया है। उपचुनाव में भाजपा को मिली हार से विपक्षी एकता को संजीवनी मिली है। एनडीए के सहयोगी दल भी नाराजगी जाहिर करने लगे हैं। इससे पार पाने के लिए अमित शाह सहयोगी दलों की मांगों, सुझावों को सुनकर जल्द ही उनकी समस्या का निवारण करने का आश्वासन दे रहे हैं। इस कड़ी में कल आज शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से मिलेंगे और महाराष्ट्र में गठबंधन को बनाए रखने के मुद्दे पर सार्थक बात करेंगे। अहम बात यह है कि शिव सेना एनडीए में सबसे पुराना सहयोगी है। फिर महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस भी नहीं चाहते कि शिव सेना एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़े।
देर से ही सही केंद्र सरकार के खिलाफ बिगड़ते माहौल को पटरी पर लाने के लिए अमित शाह महासंपर्क अभियान में जुटे हैं। इसके पीछे उनका दो मकसद है। पहला देश भर के हस्तियों से मुलाकात कर राजनीतिक माहौल को अपने पक्ष में करना। दूसरी बात ये है कि एनडीए के सहयोगी दलों के नेताओं से मिलकर उनकी शिकायतों दूर कर सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाना है। इस दिशा में शिव सेना के बाद सबसे ज्यादा असंतोष जाहिर करने वालों में बिहार के सीएम नीतिश कुमार और जेडीयू है। नीतिश कुमार ने बिहार में बड़े भाई की भूमिका और 2009 के फार्मूले पर सीटों के आवंटन की शर्त रख दी है। बिहार की समस्या से पार पाने के लिए उन्होंने सात जून को महाभोज का आयोजन किया है। इस महाभोज में जेडीयू प्रमुख और सीएम नीतिश कुमार, लोजपा प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों में राम विलास पासवान, राष्ट्रीय समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा सहित सभी सहयोगी दलों के सांसदों, विधायकों, एमएलसी, जिला प्रमुखों व प्रभावी नेताओं को आमंत्रित किया है। गुरुवार को अमित शाह चंडीगढ़ में अकाली दल के अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल से मुलाकात करेंगे। इस मुलाकात के जरिए पंजाब की ताजा राजनीतिक हालत और 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा हो सकती है। इससे पहले राजनीतिक हालातों को लेकर 3 जून को लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान ने अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की थी। इस बैठक के बाद पासवान ने कहा था कि मोदी सरकार को जल्दी ही अनूसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संबंधित कानून और प्रमोशन में आरक्षण संबंधी कानून पर अध्यादेश पर लाना चाहिए। इसके साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विषेश राज्य के दर्जा देने वाली मांग का भी उन्होंने समर्थन किया था।
उपचुनाव की हार से सबक लेते हुए शाह के नेतृत्व में भाजपा ने अपने सहयोगियों की नाराजगी दूर करने की पहल की है। भाजपा को इस बात का बखूबी एहसास है कि 2019 के चुनाव रण अकेले जीतना इतना आसान नहीं हैं। जबकि विपक्ष दलों की बन रहे महागठबंधन को मात देने के लिए एनडीए के सहयोगियों को अपने साथ रखना जरूरी है। इसीलिए शाह पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं और अपने कुनबे को बचाने में जुटे हैं।