उन्होंने कहा कि दिल्ली अर्द्धशासी राज्य है। इस बात को समझने की जरूरत है। यहां जन हित में कुछ अधिकार दिल्ली सरकार के पास हैं तो कुछ अधिकार केंद्र के पास है,जो एलजी के माध्यम से संचालित होता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के सीएम को यहां के संविधानिक प्रावधानों को समझना होगा। उसे समझे बगैर दिल्ली का सीएम बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाएगा। अगर आप इस बात को समझना ही नहीं चाहते तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है कि उसका सम्मान करना पड़ेगा। या फिर आप एक बार और अपील कर सकते हैं। लेकिन बार-बार अपील करना समस्या का समाधान नहीं है।
आपको बता दें कि अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद जून, 2015 में शुरू हुआ था। पिछले साल 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार बनाम एलजी अधिकार विवाद में सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की थी। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि कानून बनाना दिल्ली सरकार का अधिकार है। संविधान पीठ ने इस बात को सर्वसम्मति से माना था कि असली शक्ति मंत्रिमंडल के पास है और चुनी हुई सरकार से ही दिल्ली चलेगी। कोर्ट ने उस वक्त कहा था कि कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन को छोड़कर बाकी मामलों में उपराज्यपाल स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि उपराज्यपाल अनिल बैजल को स्वतंत्र फैसला लेने का अधिकार नहीं है। उन्हें मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर काम करना होगा।