सामना में शिवसेना के प्रवक्ता ने यह भी लिखा गया है कि कल तक देश में मस्जिदों की राजनीति की गई, अब मंदिरो की राजनीति शुरू गई है। जो हिंदुत्ववादी राम मंदिर पर खुलकर बोलने से कतराते हैं वे राम मंदिर का मुद्दा न्यायालय में है। ऐसा कहकर भाग जाते हैं। उन्होंने मुखपत्र में लिखा है कि भाजपा के जो नेता सबरीमाला मंदिर का निर्णय मानने को तैयार नहीं हैं, न्यायालय श्रद्धा व आस्था के मुद्दों में छेड़छाड़ न करे, ऐसा खुलेआम कहते हैं। भाजपा यह रुख हैरान करने वाला है।
उन्होंने पार्टी के मुखपत्र में लिखा है कि हमारा हिंदुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन धर्म की राजनीति जितना हम करते हैं, उतना कोई नहीं करता होगा। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सवाल 25 वर्षों से लंबित है। हर चुनाव में अब राम मंदिर पर राजनीति होती है, लेकिन मंदिर बिल्कुल भी नहीं बनता। आगे लिखा गया है कि राजनीतिज्ञ अपनी सुविधानुसार श्रद्धा के मुद्दे पर कैसे राजनीति करते हैं इसका एक और उदाहरण मतलब केरल का सबरीमाला मंदिर है। हिंदू धर्म से संबंधित रूढ़ि और परंपराओं का सख्ती से पालन करनेवाला यह मंदिर है, यहां महिलाओं की एंट्री प्रतिबंधित है।