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वोटों की तो छोड़िए अपने वर्चस्व को ही बचाने में लगी गुजरात कांग्रेस

Published: Jul 30, 2017 04:22:00 pm

Submitted by:

ghanendra singh

गुजरात में कांग्रेस के लिए इस बार भी विधानसभा चुनाव काफी मुश्किल होगा। एक ओर जहां बीजेपी मजबूत रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है तो वहीं कांग्रेस की अंदरूनी कलह ही उसके लिए मुसीबत बनती जा रही है। 

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अहमदाबाद। गुजरात में कांग्रेस के लिए इस बार भी विधानसभा चुनाव काफी मुश्किल होगा। एक ओर जहां बीजेपी मजबूत रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है तो वहीं कांग्रेस की अंदरूनी कलह ही उसके लिए मुसीबत बनती जा रही है। अपना वर्चस्व बचाने के साथ अगर वक्त रहते कांग्रेस ने बीजेपी की रणनीति की काट नहीं निकाली तो इस बार भी गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी को झटका लग सकता है। 

क्षेत्र की जगह पार्टी विधायक बेंगलुरु में
कुछ ही महीनों में गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं। एक ओर अन्य दलों के विधायक और प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्रों में जनता के बीच हैं तो वहीं दूसरी ओर विधायकों को टूटने से बचाने के लिए कांग्रेस ने 44 विधायकों को बेंगलुरु भेजा दिया है। कांग्रेस विधायक 8 अगस्त तक बेंगलुरु में रहेंगे। इससे विधायकों को अपने-अपने क्षेत्रों में नुकसान उठाना पड़ सकता है।

राज्य में बाढ़, जनता के बीच नहीं कांग्रेस विधायक
वहीं दूसरी ओर इन दिनों गुजरात में बाढ़ का कहर जारी है। कांग्रेस विधायकों को इस दौरान जनता के बीच उनका दुख बांटने के लिए होना चाहिए था लेकिन पार्टी ने विधायकों को बेंगलुरु भेजा दिया जिस वजह से भी जनता में आक्रोश है।

शंकर सिंह वाघेला के पार्टी छोड़ने से नुकसान
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कांग्रेस गुजरात में 25 साल से सत्ता से दूर है। गुजरात में बीजेपी के अहम रणनीतिकार नरेंद्र मोदी और अमित शाह इन दिनों दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में व्यस्त हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास सत्ता में आने का अच्छा मौका था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला उन्हें गुजरात की सत्ता तक पहुंचाएंगे। लेकिन चुनाव से ठीक पहले वाघेला ने कांग्रेस को झटका देते हुए पार्टी छोड़ थी। गुजरात में ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर जाति और समाज वाघेला के साथ जुड़ा है। ऐसे में वाघेला के नहीं होने की वजह से कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक प्रभावित होगा।

प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ असंतोष
गुजरात कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को चुनाव के वक्त एकजुटता दिखानी चाहिए लेकिन वहां इसके विपरीत माहौल है। जानकारों के मुताबिक प्रदेश नेतृत्व में मनमुटाव है, जिसका सीधा असर विधानसभा चुनावों में पड़ सकता है। प्रदेश नेतृत्व से असंतोष के चलते ही वाघेला ने पार्टी छोड़ दी। वाघेला चाहते थे कि उन्हें सीएम पद का दावेदार बनाया जाए लेकिन पार्टी अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी और अर्जुन मोढ़वाडिया के दबाव में पार्टी ने ऐसा नहीं किया। जिस वजह से वाघेला का पार्टी छोड़नी पड़ी। वहीं अंबिका सोनी ने भी हाल ही में प्रदेश प्रभारी पद से हट गईं। ऐसे में कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी गिर गया है।

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