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अब हिंदुत्व और हिंदू धर्म के मतलब पर पुर्नविचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

Published: Oct 16, 2016 10:36:00 am

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मुस्लिम प्रथा तीन तलाक और बहुविवाह पर महत्वपूर्ण आदेश सुनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट अब हिंदुत्व और हिंदू धर्म की दोबारा समीक्षा करेगा।

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नई दिल्ली। मुस्लिम प्रथा तीन तलाक और बहुविवाह पर महत्वपूर्ण आदेश सुनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट अब हिंदुत्व और हिंदू धर्म की दोबारा समीक्षा करेगा। सुप्रीम कोर्ट ये बताने की कोशिश करेगा कि क्या हिंदुत्व हिंदू धर्म की धार्मिक प्रथाओं से जुड़ा है या इसका संबंध भारतीय लोगों के जीवन जीने के तरीके से है।

20 साल बाद सुप्रीम कोर्ट हिंदुत्व पर सुनाएगा फैसला

करीब 20 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच इस बात को रखेगी कि ये एक धर्म के कट्टर विश्वास से ज्यादा भारतीय लोगों के जीवन जीने के तरीके का संकेत देता है। ये कुछ ही व्यक्तियों तक सीमित नहीं है। ये एक सोच भी है जिसका धार्मिक प्रथाओं से कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में 1995 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनाए गए एक ऐसी ही फैसले को रेखांकित भी किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना था हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना गलत नहीं

इसमें भाजपा ने खुद पर लगने वाले जातिवाद के आरोपों को खारिज किया है। इसमें लिखा है कि सर्वोच्च न्यायलय भी हिंदुत्व और हिंदू धर्म का सही अर्थ समझती है। दिसंबर 1995 में सुप्रीम कोर्ट में तीन सदस्यों की बेंच की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस जेएस वर्मा ने लिखा था कि हिंदुत्व के नाम पर जनता का वोट मांगना गलत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 123 के तहत ये फैसला सुनाया था। सेक्शन 123 (3ए) के अनुसार चुनाव प्रचार में धर्म, जाति, समाज और भाषा के आधार पर नफरत फैलाना भ्रष्ट तरीका है। इस आधार पर मुंबई हाइकोर्ट ने बहुत से भाजपा और शिवसेना के उम्मीदवारों के लिए रोड़ा बना था।
हिंदुत्व भारतीय लोगों के जीवन जीने का तरीका है: सुप्रीम कोर्ट

उसके बाद शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, मनोहर जोशी और आर वाई प्रभु की अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हिंदू धर्म और हिंदुत्व को सिर्फ हिंदू प्रथाओं से जुड़ा हुआ होने से इनकार किया था। इस बेंच के अनुसार हिंदुत्व भारतीय लोगों का जीवन जीने का तरीका है। ये किसी धर्म विशेष में विश्वास करना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव भाषणों में हिंदुत्व जैसे शब्दों को शामिल करने की अनुमति भी दी थी। जनवरी 2014 में इस मामले में हिंदुत्व को चुनाव प्रचार में इस्तेमाल करने के लिए पांच सदस्यीय जजों की बेंच गठित की गई। ये मामला उसके बाद सात सदस्यों वाली बेंच को सौंप दिया गया। ये बेंच दोबारा से हिंदुत्व की समीक्षा करके अपनी रिपोर्ट सौपेंगी।

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