प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब मैं पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देने वाला था, तब सुषमा जी ने मुझे काफी कुछ सिखाया था।
पीएम मोदी ने एक किस्सा सुनाते हुए बताया कि यूएन में मेरा पहला भाषण होना था और मैं पहली बार वहां जा रहा था। मेरे जाने से पहले ही सुषमा जी वहां पहुंच गईं। जब मैं वहां पहुंचा तो वह मुझे रिसीव करने के लिए गेट पर खड़ी थीं।
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मैंने कहा कल सुबह मुझे भाषण देना है, इस पर कुछ चर्चा कर लेते हैं, तो सुषमा जी ने पूछा आपका भाषण कहां है? मैंने कहा ऐसे ही बोल देंगे, तब उन्होंने कहा अरे मेरे भाई ऐसे नहीं होता है। दुनिया से भारत की बात करनी है, आप अपनी मर्जदी से नहीं बोल सकते हैं।
सुषमा ने रातोंरात तैयार कराई थी मेरी स्पीच: PM
पीएम मोदी ने कहा कि मैं एक प्रधानमंत्री था और वह विदेश मंत्रालय की मेरी साथी, लेकिन फिर भी मुझसे कहती हैं कि अरे भाई ऐसा नहीं होता है.. मैंने कहा कि पढ़कर बोलना मेरे लिए काफी मुश्किल है, मैं ऐसे ही बोलूंगा। तब उन्होंने सीधे-सीधे मना करते हुए कहा, जी नहीं। इसके बाद रात में ही सुषमा जी ने मुझसे स्पीच तैयार कराई।
पीएम मोदी ने सुषमा स्वाराज को याद करते हुए कहा ‘सुषमा जी का बड़ा आग्रह था कि आप कितने ही अच्छे वक्ता क्यों न हो, आपके विचारों में कितनी ही साध्यता क्यों न हो, पर कुछ फोरम ऐसे होते हैं, जिनकी अपनी मर्यादा होती है, और हमें उसे निभाना पड़ता है।’ सुषमा जी ने मुझे यह पहला सबक सिखाया था।
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पीएम ने कहा कि इस सबक से यह समझ में आता है कि जिम्मेदारी जो भी हो, पर जो आवश्यक है उसे बिना रोकटोक के करना आवश्यक है।
इतना ही नहीं, पीएम मोदी ने यह भी कहा कि सुषमा स्वराज कृष्ण भक्ति को समर्पित थीं। कृष्ण सुषमा के मन मंदिर में बसे रहते थे। पीएम ने कहा कि वो कृष्ण के संदेश को जीती थीं।
पीएम ने कहा कि हम जब भी मिलते थे तो वह जय श्री कृष्ण कहती थीं और मैं बदले में उन्हें जय द्वारकाधीश कहता था। अगर उनकी जीवन यात्रा को देखें तो लगता है कि कर्मण्येवाधिकारस्तु…क्या होता है सुषमा जी ने इसे दिखाया है।
बता दें कि मंगलवार की रात दिल का दौरा पड़ने के कारण सुषमा स्वराज का 67 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा (तब के पंजाब) में अंबाला छावनी में हुआ था।
सुषमा एक कुशल राजनेता के तौर पर भारत की राजनीति में उभर कर सामने आईं। अपने राजनीतिक कौशल से वे सत्तापक्ष के साथ ही विपक्षी दलों के दिलों में राज करती थीं।