टीडीपी ने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के साथ जाकर कुछ 2004 जैसी स्थिति खड़ी कर दी है। जी हां, ये वो वक्त था जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार से भी कुछ दलों ने समर्थन वापस ले लिया था और यूपीए के साथ जा मिले थे। बाद में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार का गठन हुआ और कई ऐसे चेहरे मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री बने जो वाजपेयी जी की सरकार में भी मंत्री थे या फिर उनकी पार्टी से कोई चेहरा यूपीए सरकार में मंत्री रहा।
2004 से पहले लोजपा और डीएमके ऐसी पार्टियां थी जो एनडीए के साथ थीं, लेकिन ठीक चुनाव से पहले इन्होंने यूपीए का साथ देने का फैसला किया। 2004 लोकसभा चुनाव में यूपीए को जीत मिली और इन पार्टियों से बड़े चेहरों को कैबिनेट में जगह मिली। लोजपा से रामविलास पासवान 2001 से लेकर 2002 तक अटल जी की सरकार में खद्यान मंत्री थे। इसके बाद 2004 का चुनाव नजदीक आते ही रामविलास पासवान ने एनडीए का साथ छोड़ दिया और यूपीए का दामन थाम लिया। इसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार में भी पासवान को रसायन, उर्वरक और इस्पात मंत्री बनाया गया।
इसके अलावा डीएमके ने 2004 के चुनाव से पहले एनडीए का साथ छोड़ दिया था और यूपीए के साथ जाने का फैसला किया था। अटल जी की सरकार में डीएमके से मुरासोली मरान वाणिज्य और उद्योग मंत्री थे और टीआर बल्लू वन एवं पर्यावरण मंत्री थे। बाद में डीएमके ने कांग्रेस के साथ जाने का फैसला किया और मनमोहन सिंह की सरकार में टीआर बल्लू सड़क परिवहन राज्य मंत्री बने जबकि दयानिधी मरान को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया।
इन सबके अलावा ममता बनर्जी भी 2004 से पहले अटल जी की सरकार में रेल मंत्री रही थीं, लेकिन बाद में उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया था। आज फिर से जब एनडीए के घटक दल उसका साथ छोड़ कांग्रेस के साथ जा रहे हैं तो 2004 जैसे हालात खड़े हो गए हैं, जहां विपक्षी एकता की वजह से ही यूपीए सत्ता में आई थी। 2019 के चुनाव को लेकर विपक्ष की एकजुटता बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा सकती है। टीडीपी के अलावा शिवसेना भी काफी समय से बगावती तेवर दिखा रही है। इसके अलावा बीते 18 सालों से एनडीए का हिस्सा रही अखिल झारखंड स्टूडेंट यूनियन यानी आजसू भी अब एनडीए से अलग हो चुकी है। बीच में खबरें ये भी आईं थीं कि आजसू विपक्ष के साथ जा सकती है।