बुधवार को टीआरएस के नए विधायकों ने बैठक में केसीआर को अपना नेता चुना था। आपको बता दें कि इसी वर्ष जून में केसीआर ने दोबारा सत्ता में आने के लिए अपना दांव चला और विधानसभा को समय से पूर्व भंग कर दिया। उनका अनुमान और तीर निशाने पर लगा और जनता ने बहुमत के साथ राव के सिर ताज सजाया।
केसीआर ने अपने मंत्रिमंडल में सभी वर्गो को प्रतिनिधित्व देने की बात कही है। राज्य की 119 सीटों पर टीआरएस ने 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। केसीआर ने सिद्दीपेट जिले की गजवेल सीट से जीत हासिल की है। संवैधानिक व्यवस्था के तहत राज्य के मंत्रिमंडल में अधिकतम 18 सदस्य हो सकते हैं।
राज्यपाल के सामने पेश किया दावा
इससे पहले टीआरएस प्रमुख राव एक बार फिर अपनी सरकार बनाने का दावा राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन को पेश किया था। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था। इसके बाद गुरुवार को राव ने राज्य में दूसरी सीएम बनने की शपथ ली। आपको बता दें कि राव ने जून महीने में ही राज्य विधानसभा भंग करने की राज्यपाल से पेशकश की थी, जिसे राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया था और राव को कार्यवाहक सरकार के तौर पर पद पर बने रहने को कहा था।
इससे पहले टीआरएस प्रमुख राव एक बार फिर अपनी सरकार बनाने का दावा राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन को पेश किया था। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था। इसके बाद गुरुवार को राव ने राज्य में दूसरी सीएम बनने की शपथ ली। आपको बता दें कि राव ने जून महीने में ही राज्य विधानसभा भंग करने की राज्यपाल से पेशकश की थी, जिसे राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया था और राव को कार्यवाहक सरकार के तौर पर पद पर बने रहने को कहा था।
ओवैसी का समीकरण कर गया काम
अल्पसंख्यक मत ओवैसी के साथ होने की वजह से केसीआर के खेमे में गए। यानी ओवैसी का जो समीकरण था वो राव के सटीक दांव का हिस्सा बना। राज्य में करीब 12.5 फीसदी के आसपास मुस्लिम आबादी है। कांग्रेस ने केसीआर और भाजपा के बीच सांठगांठ का आरोपग लगाते हुए अल्पसंख्यक मतों को लुभाने का दांव चला। अन्य राज्यों की तुलना में कांग्रेस ने यहां नरम हिंदुत्व की रणनीति को तिलांजलि देकर मुस्लिम मतों पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया।
अल्पसंख्यक मत ओवैसी के साथ होने की वजह से केसीआर के खेमे में गए। यानी ओवैसी का जो समीकरण था वो राव के सटीक दांव का हिस्सा बना। राज्य में करीब 12.5 फीसदी के आसपास मुस्लिम आबादी है। कांग्रेस ने केसीआर और भाजपा के बीच सांठगांठ का आरोपग लगाते हुए अल्पसंख्यक मतों को लुभाने का दांव चला। अन्य राज्यों की तुलना में कांग्रेस ने यहां नरम हिंदुत्व की रणनीति को तिलांजलि देकर मुस्लिम मतों पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया।