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महागठबंधन के लिए कांग्रेस की नई चाल, महबूबा के सहारे 2019 की तैयारी

locationनई दिल्लीPublished: Jul 02, 2018 11:22:25 am

महागठबंधन के लिए कांग्रेस की नई चाल, महबूबा के सहारे 2019 की तैयारी

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महागठबंधन के लिए कांग्रेस की नई चाल, महबूबा के सहारे 2019 की तैयारी

नई दिल्ली। मिशन 2019 के लिए राजनीतिक दलों ने अब जोर आजमाइश लगाना शुरू कर दी है। महागठबंधन को मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस बड़ा कदम उठा सकती है। मोदी सरकार की राह में रोड़ा डालने के लिए कांग्रेस की अगुवाई में तीसरा मोर्चा यानी महागठबंधन अपने पैर पसारने की कोशिश में जुटा है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने बड़ी चाल चली है, गठबंधन के विस्तार और भाजपा को पलटवार के लिए कांग्रेस अब जम्मू-कश्मीर में संभावनाएं तलाश रही है। इसके लिए मेहबूबा कांग्रेस की सीढ़ी का काम कर सकती है। कैसे आइए जानते हैं…
भाजपा के समर्थन लेने के बाद पीडीपी प्रमुख मेहबूबा मुफ्ती प्रदेश में सरकार बनाने के लिए जी तोड़ कोशिश में जुटी है। यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर से राजनीतिक उठापटक जोर पकड़ रही है। मेहबूबा की इसी छटपटाहट का फायदा कांग्रेस उठाना चाहती है। यानी कांग्रेस अपना हाथ महबूबा के हाथ में देना चाहती है। हालांकि भाजपा के समर्थन वापस लेने के वक्त कांग्रेस ने इस संभावना से इनकार किया था, लेकिन अब सवाल महागठबंधन का है, ऐसे में महबूबा सिर्फ जरिया है मिशन तो 2019 है। क्योंकि कांग्रेस के समर्थन से पीडीपी दोबारा सत्ता में आती है या सरकार बनाती है तो जाहिर पाडीपी भी 2019 में महागठबंधन का बड़ा चेहरा होगी।
मंगलवार को होगी अहम बैठक
पीडीपी से गठजोड़ के लिए मंगलवार का दिन काफी अहम है, क्योंकि 3 जुलाई को कांग्रेस की एक अहम बैठक होने जा रही है। इस बैठक में जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के नेता, सभी विधायक, एमएलसी के साथ पूर्व मंत्रियों और राज्यसभा में विपक्ष के नेता और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद और अंबिका सोनी भी शामिल होंगे। माना जा रहा है कि इस बैठक में महबूबा से हाथ मिलाने पर मुहर लग सकती है।
उधर…यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि महबूबा भी गुलाम नबी आजाद और सोनिया गांधी से मुलाकात करना चाहती है, लिहाजा जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के नेता इस मुलाकात को जुगत में लग गए हैं। आपको बता दें कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए दोनों पार्टियां सरकार बनाने की कोशिश में हैं।

पहले भी मिल चुके हैं कांग्रेस-पीडीपी
कांग्रेस-पीडीपी के बीच गठबंधन कोई नया नहीं है। इससे पहले भी इन दोनों ने 2002 में हाथ मिलाया था। उस वक्त मुफ्ती मुहम्मद सईद के नेतृत्व में पीडीपी-कांग्रेस करीब आए और सरकार बनाई। इस दौरान दोनों पार्टी ने मिलकर 3-3 साल के फॉर्मूले पर काम किया। पहले मुहम्मद सईद सीएम बने तो बाद के तीन साल में कांग्रेस गुलाम नबी आजाद ने सत्ता संभाली। हालांकि अमरनाथ भूमि मुद्दे को लेकर पीडीपी ने आजाद सरकार को झटका देते हुए समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।

ऐसे बन रहा सीटों का गणित
87 सीटों वाली राज्य विधानसभा में पीडीपी के पास फिलहाल 28 विधायक हैं। जबकि कांग्रेस के पास 12 विधायक हैं। ऐसे में पीडीपी और कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए 4 और विधायकों की जरूरत है। अब सीपीआई (एम) का एक विधायक, पीडीएफ का एक विधायक और दो निर्दलीय विधायक उन्हें समर्थन दे देते हैं तो ये कोशिश रंग लाएगी।

भाजपा के पक्ष में नहीं ये चार
कांग्रेस और पीडीपी के लिए संतोषजनक बात यह है कि चारों निर्दलीय विधायक भाजपा के पक्ष में नहीं है। निर्दलीय विधायकों में पवन गुप्ता, मुहम्मद यूसुफ तारीगामी, हकीम मुहम्मद यासीन और इंजीनियर रशीद हैं। चारों ऐसे विधायक हैं जिन्होंने भाजपा को समर्थन नहीं किया है।
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