1. ‘घर में दरार’
महाभियोग प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल बनी है अपने ही घर में आई दरार। पार्टी के वरिष्ठ नेता और वकील सलमान खुर्शीद ने महाभियोग प्रसताव पर अपनी ही पार्टी के फैसला का विरोध किया है। उधर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को उनके पद से हटाने से संबंधित नोटिस पर हस्ताक्षर नहीं किए। हालांकि कांग्रेस ने इसे तवज्जो ना देते हुए कहा कि पार्टी मुद्दे में अपने वरिष्ठ नेताओं को शामिल करना नहीं चाहती। नोटिस पर सात राजनीतिक दलों के 71 राज्यभा सदस्यों ने हस्ताक्षर किया है, जिनमें से सात सेवानिवृत्त हो गए हैं।
महाभियोग प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल बनी है अपने ही घर में आई दरार। पार्टी के वरिष्ठ नेता और वकील सलमान खुर्शीद ने महाभियोग प्रसताव पर अपनी ही पार्टी के फैसला का विरोध किया है। उधर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को उनके पद से हटाने से संबंधित नोटिस पर हस्ताक्षर नहीं किए। हालांकि कांग्रेस ने इसे तवज्जो ना देते हुए कहा कि पार्टी मुद्दे में अपने वरिष्ठ नेताओं को शामिल करना नहीं चाहती। नोटिस पर सात राजनीतिक दलों के 71 राज्यभा सदस्यों ने हस्ताक्षर किया है, जिनमें से सात सेवानिवृत्त हो गए हैं।
2. ‘अतीत आएगा आड़े’
चीफ जस्टिस पर महाभियोग प्रस्ताव लाने के कांग्रेस के मंसूबों की दूसरी मुश्किल है उनका अतीत। जी हां पिछले ढाई दशक में कांग्रेस ने अपनी ही सरकार के समय इस तरह के प्रस्तावों का सामना किया। साल 1993 में जब पहली बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति वी रामास्वामी पर महाभियोग चलाया गया तो वरिष्ठ अधिक्ता के तौर पर कपिल सिब्बल ने लोकसभा में विशेष बार के जरिये उनका बचाव किया। दूसरी बार साल 2011 में जब कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया तो भी कांग्रेस की ही सरकार थी। वहीं सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्याययाधीश के रूप में न्यायमूर्ति पीडी दिनाकरण के खिलाफ भी इसी तरह की कार्यवाही में पहली नजर में पर्याप्त सामग्री मिली थी, लेकिन बाद में उन्होंने ही इस्तीफा दे दिया था।
3. ‘उपराष्ट्रपति की कसौटी’
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का फैसला भी कांग्रेस के लिए बड़ी अड़चन साबित हो सकता है। क्योंकि कांग्रेस ने नेतृत्व में 7 दलों ने भले ही देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस उपराष्ट्रपति को सौंप दिया है, लेकिन वह इस पर फैसले में समय ले सकते हैं। वाइस प्रेजिडेंट वेंकैया नायडू इस पर फैसले से पहले यह देखेंगे कि आखिर सीजेआई के खिलाफ इन्क्वायरी कराने के लिए विपक्ष के आरोप पुख्ता हैं या नहीं। कोई फैसला लेने से पहले नायडू जानकारों से राय ले सकते हैं और कोर्ट रिकॉर्ड्स भी मंगाए जा सकते हैं ताकि मुख्य न्यायाधीश पर लगे आरोपों का परीक्षण किया जा सके। उपराष्ट्रपति की कसौटी पर आरोप पुख्ता नहीं पाए जाते हैं तो फिर वे प्रस्ताव को मंजूरी देने से इनकार कर सकते हैं।
अब कांग्रेस इन तीनों अड़चनों को पार करने में कामयाब होती है तो ही वो प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर ‘कदाचार’ और पद के दुरुपयोग का आरोप साबित करने में सफल होगी।