बैंगलोर

हवाई सफर : भारत के बड़े शहरों में क्यों नहीं हैं दो हवाई अड्डे…

यात्रियों के संग बढ़ी महानगरों में दूसरे हवाई अड्डे की जरूरत, मगर आसान नहीं राह

बैंगलोरDec 13, 2021 / 02:24 am

Jeevendra Jha

Unruly passenger on Chennai-Colombo flight made to de-board

कुमार जीवेंद्र झा
बेंगलूरु. विदेशों मेें किसी शहर में दो हवाई अड्डे का होना आम बात है मगर देश के किसी भी शहर या उसकी परिधि में अभी दो हवाई अड्डे नहीं हैं। कुछ शहरों में दूसरे हवाई अड्डे का निर्माण कच्छप गति से चल रहा है तो कहीं ऐसा प्रस्ताव कागजों पर ही सिमटा है। बेंगलूरु में फिलहाल ऐसी संभावना क्षीण है। हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के जेवर में नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के शिलान्यास से एक बार फिर बड़े शहरों में दूसरे हवाई अड्डे की संभावना को लेकर चर्चा तेज हुई है।
पिछले कुछ सालों के दौरान देश में हवाई सफर करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। खासकर, उड़ान योजना के तहत छोटे शहरों के हवाई सेवा से जुडऩे के बाद। इससे शहरों के हवाई अड्डों पर यातायात का दबाव भी बढ़ा है। मगर, वित्तीय तौर पर मुनाफे की स्थिति बनने में अभी वक्त लगेगा। कोरोना के बाद उपजी स्थिति से भी उड्डयन क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है।
दो दशकों में बदल जाएगा परिदृश्य
नागरिक उड्डयन मंत्रालय की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 31 से अधिक बड़े शहरों में दो या उससे अधिक हवाई अड्डों की जरूरत बताई गई थी। रिपोर्ट में कहा गयाकि दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में वर्ष 2040 तक तीन हवाई अड्डों की जरूरत पड़ सकती है। जिस तरह देश में उड्डयन सेवाओं का विस्तार हो रहा है, वर्ष 2040 तक इन दोनों महानगरों में दो हवाई अड्डे भी परिचानात्मक दबाव में होंगे और तीसरे हवाई अड्डे की जरूरत होगी। वर्ष 2030 तक मुंबई, दिल्ली, गोवा, बेंगलूरु आदि कई शहरों में दो हवाई अड्डों की जरूरत होगी। 2035 तक और भी कई शहरों के नाम इस सूची में जुड़ सकते हैं।
मुंबई, गोवा में बन रहा दूसरा हवाई अड्डा
मुंबई में दूसरे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का काम चल रहा है। वर्ष 2018 में नवी मुंबई हवाई अड्डे का शिलान्यास हुआ था और वर्ष 2024 तक यहां परिचालन शुरू करने की योजना है। चेन्नई में भी बढ़ते हवाई यातायात के दबाव को देखते हुए दूसरे हवाई अड्डे के निर्माण का प्रस्ताव विचाराधीन है। गोवा के मोप्पा में बन रहे दूसरे हवाई अड्डे का परिचालन वर्ष 2022 के अंत या 2023 के प्रारंभ में शुरू होने की संभावना है। कोलकाता में भी दूसरे हवाई अड्डे की संभावना तलाशी जा
रही है।
बेंगलूरु में समझौते की शर्त बनी बाधा
बेंगलूरु में दूसरे हवाई अड्डे की मांग काफी समय से होती रही है। 13 साल पूर्व शहर के बाहर नए ग्रीनफील्ड केंपेगौड़ा हवाई अड्डे (केआइए) के शुरू होने से पहले शहर के मध्य में स्थित सरकारी एचएएल हवाई अड्डे से ही घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का परिचालन होता था। लेकिन, आईटी सिटी में हवाई यातायात के बढ़ते दबाव के कारण शहर से बाहर नया हवाई अड्डा बनाया गया। इसके बाद भी एचएएल हवाई अड्डे को घरेलू और कम दूरी की उड़ानों के लिए फिर से चालू करने की मांग समय-समय पर होती रहती है। राज्य सरकार भी इसके लिए प्रयास करती रही है मगर सरकार और केआइए की परिचालक कंपनी बेंगलूरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (बीआइएएल) के बीच इस पर सहमति नहीं बन पा रही है। सरकार ने बीआइएएल को ही एचएएल हवाई अड्डे के परिचालन का प्रस्ताव भी दिया मगर बात नहीं बनी।
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वर्ष 2033 से पहले बेंगलूरु में दूसरा हवाई अड्डा मुश्किल
दरअसरल, सरकार और बीआइएएल के बीच हुए करार के मुताबिक केआइए से परिचालन शुरू होने के 25 साल यानी वर्ष 2033 तक 150 किमी के दायरे में किसी प्रतिस्पर्धी व्यवसायिक हवाई अड्डे को परिचालन की अनुमति नहीं देने की शर्त है। यही शहर में दूसरे हवाई अड्डे की राह में अवरोधक है। देश के सर्वाधिक व्यस्ततम हवाई अड्डों में से एक केआइए का दूसरा रन-वे भी चालू हो चुका है और दक्षिणी राज्यों में इस तरह की सुविधा वाला यह एकमात्र हवाई अड्डा है। लेकिन, शहर से अधिक दूरी और आवागमन के सीमित विकल्पों के कारण एचएएल हवाई अड्डे को फिर से चालू करने की मांग होती रही है।
बेंगलूरु के आर्थिक विकास के पैटर्न, बढ़ती आबादी और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए सरकार को दूसरे हवाई अड्डे के विकल्प पर सोचना चाहिए। एचएएल के बजाय बेंगलूरु-मैसूरु के बीच भी दूसरा हवाई अड्डा बनाया जा सकता है। इससे औद्योगिक विकास और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। अभी यातायात जाम की समस्या के साथ हवाई अड्डे तक यात्रा में लगने वाले समय काफी ज्यादा होता है।
बेंगलूरु चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज

दूसरा हवाई अड्डा महानगरों की जरूरत है। सरकार को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए। एकाधिकार जैसी स्थिति के बजाय पश्चिमी देशों की तरह प्रतिस्पर्धी व्यवस्था बनाई जा सकती है। हवाई सफर सस्ता होने से यात्री बढ़ेंगे तो राजस्व की समस्या भी दूर होगी। सरकार को दूरगामी सोच के साथ रणनीति बनानी चाहिए।
एन शिवशंकर, उड्डयन विशेषज्ञ
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