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किसानों की मित्र होती है इंडियन हार्वेस्टर आंट

locationप्रतापगढ़Published: Oct 28, 2020 04:26:35 pm

Submitted by:

Devishankar Suthar

प्रतापगढ़. अमुमन चींटियां काफी छोटी होती है। लेकिन इनका पर्यावरण में योगदान कम नहीं है। चींटियों की एक प्रजाति इंडियन हार्वेस्टर आंट होती है। जो पानी के स्रोतों के आसपास अपने बिल बनाती है। इसके बिल में नसों की तरह हवादार नालियां, सुराख एवं चैंबर बनाती है। जिससे मिट्टी में हवा, पानी एवं बीज प्रकीर्णन वेस्ट रिसाइकिलिंग कर मिट्टी को पुन: जैविक खाद प्रदान करती है। इस कारण यह किसानों की मित्र होती है।

किसानों की मित्र होती है इंडियन हार्वेस्टर आंट

किसानों की मित्र होती है इंडियन हार्वेस्टर आंट


-=जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए जैविक खाद बनाती
-घरोंदे भी ऐसे बनाती है कि बारिश का पानी बिल अंदर नहीं जाता
प्रतापगढ़.
अमुमन चींटियां काफी छोटी होती है। लेकिन इनका पर्यावरण में योगदान कम नहीं है। चींटियों की एक प्रजाति इंडियन हार्वेस्टर आंट होती है। जो पानी के स्रोतों के आसपास अपने बिल बनाती है। इसके बिल में नसों की तरह हवादार नालियां, सुराख एवं चैंबर बनाती है। जिससे मिट्टी में हवा, पानी एवं बीज प्रकीर्णन वेस्ट रिसाइकिलिंग कर मिट्टी को पुन: जैविक खाद प्रदान करती है। इस कारण यह किसानों की मित्र होती है।
-संप्रेषण का ऐसी व्यवस्था नहीं किसी भी जीव में
चीटियों की सामाजिक व्यवस्था काफी व्यवस्थित और अनुशासित होती है। इनमें इनकी रासायनिक संचार संप्रेषण बड़ा जटिल और सटीक होता है। अक्सर यह अपने एंटीना से टेपिंग कर रासायनिक संचार संप्रेषण करती हैं। मजदूर चीटियों आदि से संप्रेषण के लिए अलग-अलग कार्यों के लिए रसायन का रिसाव कर अलग-अलग कार्य के लिए संप्रेषण करती है। जैसे खतरे का संकेत, भोजन इक_ा करने के लिए संकेत, बिलों में मृत चींटियों को हटाना, साफ करने के लिए रासायनिक संकेत से इक_ा करना आदि होते है।
कई प्रकार के बीजों को इकट्ठा करती है
खास बात यह है कि यह कई बीजों को इक_ा करती हैं ताकि उस बीज के सिरों पर लगे प्रोटीन को खा सकें और अपने साथियों को यह कॉलोनी को भोजन प्राप्त हो सके। क्योंकि यह चींटी बीजों के सिरों पर लगे प्लूमूल को हटा देती हैं। ताकि बिल में बीज अंकुरित ना हो सके। फिर भी कई बीज इनके स्टोर रूम में इक_ा करने के दौरान रह जाते है। कई बीजों के सिर पर इलायोसोम लगे होते हैं। जो प्रोटीन और लिपिड से भरे होते हैं। जिससे चींटियां आकर्षित होती हैं। अपने बिलों में स्थित को लार्वा खिलाने के काम आते हैं। जो इलायोसोम खाने के बाद बचता है, उसे यह चीटियां वेस्ट गोदाम चेंबर में रख देती है। जो बाद में अंकुरित हो जाते हैं। इस तरह यह बीज को इक_ा करने के कारण यह हार्वेस्टर चींटी कहलाती है।
-अभी और रिसर्च की आवश्यकता
चीटियों की लगभग 12 हजार प्रजातियां अब तक दुनिया भर में ज्ञात है। वहीं इस प्रजाति की खासियत है कि अपने बिलों के मुहाने को बाढ़ या बरसात के पानी को रोकने के लिए खास एक केंद्रीय मिट्टी की दीवार की श्रंखलाओं की संरचना बनाती है। जो पानी को बिलों में जाने से रोकती। यह चींटी नदी-नालों वाले घने जंगलों, घाटी आदि स्थानों पर रहती है। लेकिन पूरी तरह की जानकारी के लिए रिसर्च जरूरी है। इसका नामकरण को लेकर अभी वैज्ञानिक एक मत नहीं है।
देवेन्द्र मिस्त्री, पर्यावरणविद्

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