कांठल में मिली दुर्लभ मेलेनेस्टिक गिलहरी
प्रतापगढ़Published: May 26, 2023 11:52:58 am
पर्यावरण प्रेमी उत्साहित


कांठल में मिली दुर्लभ मेलेनेस्टिक गिलहरी
प्रतापगढ़. यहां सीतामाता अभयारण्य में उडऩ गिलहरी पाई जाती है। जो अपने आप में अभयारण्य को अलग ही पहचान दिलाती है। लेकिन हाल ही में शहर के पास ही एक दुर्लभ गिलहरी दिखाई दी है। जो काले-मटमैले रंग की है, इसे मेलेनेस्टिक गिलहरी के रूप में पहचानी जाती है। जो करीब १० हजार गिलहरियों में एक होती है। जो काफी दुर्लभ है। इस गिलहरी के दिखने से कांठल में जैव विविधता को दर्शाती है।
गौरतलब है कि वनस्पतियों, वन्यजीव और पक्षियों के व्यवहार की रोचक जानकारी करने वाले मंगल मेहता ने दुर्लभ मेलेनेस्टिक गिलहरी को देखा है। यह आंशिक रूप से मेलेनिस्टिक भारतीय पॉम गिलहरी है।
कई जीवों में हो सकती है यह अवस्था
पर्यावरणविद् मेहता के अनुसार गिलहरी ही नहीं यह अवस्था कई प्रजातियों के जीवो में होती है, जो बहुत दुर्लभ होता है। प्रत्येक 10 हजार गिलहरी में से एक मेलेनेस्टिक गिलहरी होने की सम्भावना होती है। यह एक जेनेटिक डिफेक्ट होता है। जिसमें रंगों का निर्धारण करने वाला तत्व मेलामाइन और कोशिकाओं में असंतुलन होता है। तब वह जीव पूर्ण या आंशिक रूप से मेलेनेस्टिक होता है। इसी तरह का एक बिल्कुल सफेद (अल्बिनो) कौआ सन् 1942 में प्रतापगढ़ में रिकॉर्ड हुआ था। जिसका रंग सफेद था। जब किसी जानवर या पक्षी में अपना जेनेटिक रंग न होकर सफेद रंग अधिक या पूर्ण रूप से सफ़ेदी लिए होता है तब उस जीव को ल्युसिस्टिक एनिमल या बर्ड कहते हैं। यह मेलेनिज्म और ल्यूसीजम जीवों को प्रसिद्ध भी कर देता है। भारत में उड़ीसा के सिमलीपाल टाइगर रिजर्व का ब्लैक टाइगर और काबिनी संरक्षित वन, कर्नाटक का ब्लैक पैंथर दोनों ही अपने असमान्य काले रंग के लिए प्रसिद्ध है।