स्थानीय लोगों की मान्यता है कि त्रेता युग(रामायण काल) में राम ने सीता को वनवास भेजा था। जिसके बाद सीता ने यहीं अवस्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में निवास किया था। उस समय उसके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म भी यहीं वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। यहां तक कि सीता अंतत: जहां भू-गर्भ में समा गई थी। वह स्थल भी इसी अभयारण्य में स्थित है। सहस्त्रों वर्ष से सीता से प्रतापगढ़ के रिश्तों के संबंध में लोक-मान्यताओं के चलते यह अभयारण्य का नामकरण सीता के नाम पर किया गया। इसी अभयारण्य में सीतामाता का मंदिर, महर्षि वाल्मीकि आश्रम और लव-कुश बाग, वर्षों पुराना बरगद का पेड़ को इसी से जोड़ते हुए देखा जाता है। इसी स्थान पर लव और कुश ने अश्वमेध के घोड़ों को पकड़ा था और राम को युद्ध के लिए ललकारा था। ये मान्यता है कि वह पेड़ जिस पर हनुमान जी को बांधा गया था, आज भी यहां पर मौजूद हैं। यहां पहाड़ी पर स्थित सीता मंदिर उस प्राचीन मान्यता का द्योतक है। जिस समय माता सीता धरती में समाई तब यह पहाड़ दो हिस्सों में फट गया। लोग इस स्थान को युगों से पवित्र मानते आ रहे हैं। यहां मंदिर परिसर, सीता बाड़ी में प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मेला आयोजित होता है। सीता बाड़ी दुनिया का एकमात्र मंदिर है जिसमें हिंदू देवी सीता माता की एकल प्रतिमा है। इतने सारे पौराणिक स्थानों के होने के कारण इस इलाके का नाम सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य रखा गया है।
सीतामाता अभयारण्य में जैव विविधता को देखते हुए इसको अभयारण्य घोषित करने के लिए दो जून 1979 को अधिसूचना जारी हुई थी। इसके बाद 19 अप्रेल 1989 में राज्यपत्र में इस संबंध में प्रकाशन हुआ था। इसके बाद से ही इस अभयारण्य को नेशनल पार्क घोषित करने के लिए प्रयास किए जा रहे है।
सीतामाता अभयारण्य की भौगोलिक स्थिति
सीतामाता अभयारण्य 423 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ वनाच्छादित भू-भाग है। जो अरावली, विंध्याचल व मालवा के पठार के बीच अवस्थित हैं। इससे यहां पर उत्तर, दक्षिण व पश्चिम क्षेत्रों में पाए जाने वाले जैव विविधता का संगम होता है। इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 280 से 600 मीटर है। इस अभयारण्य में तीनों प्रकार के एवरग्रीन, सेमी एवरग्रीन व पतझड़ वाले वन क्षेत्र भी पाए जाते हैं। इसका सबसे अधिक क्षेत्र 335.62 वर्ग किलोमीटर प्रतापगढ़ जिले में आता है। जबकि चित्तौडगढ़़ जिले में 79.54 वर्ग किलोमीटर व उदयपुर जिले में 7.77 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही है। अभयारण्य में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं।
इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 756 मिमी होती है। सर्दियों के दौरान तापमान 6 से 14 डिग्री सेल्सियस और गर्मियों में 32 से 45 डिग्री के बीच होती है।
दुर्लभ जड़ी-आठ सौ किस्मों के पेड़-पौधे
सीतामाता अभयारण्य में करीब आठ सौ प्रकार के विशालकाय से लेकर छोटे पेड़-पौधों पाए जाते हैं। जबकि 330 जड़ी-बूटियों की पहचान हो चुकी है। इनमें से दुर्लभ जड़ी-बुटियों की 33 प्रजातियां तो केवल यहीं पाई जाती है। अभी तक वन विभाग ने इसमें करीब साढ़े सात सौ प्रकार के पेड़-पौधों की पहचान कर ली है। इसके साथ ही यहां पर अब तक 2 सौ से अधिक औषधीय पादप की पहचान हो चुकी है। जबकि अन्य कई जड़ी-बुटियों की पहचान अभी बाकी है।