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Sitamata Sanctuary needs national recognition सीतामाता अभयारण्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान की दरकार

locationप्रतापगढ़Published: May 26, 2022 03:52:14 pm

Submitted by:

Devishankar Suthar

Sitamata Sanctuary needs national recognition सीतामाता अभयारण्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान की दरकार

Sitamata Sanctuary needs national recognition सीतामाता अभयारण्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान की दरकार

Sitamata Sanctuary needs national recognition सीतामाता अभयारण्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान की दरकार


प्रतापगढ़.
जिले का सीतामाता अभयारण्य प्रदेश का मुख्य विविध जैव विविधताओं का संगम स्थल का जंगल है। जो प्रदेश में जैव विविधताओं के मद्देनजर पहले स्थान पर है। ऐसे में यह प्रदेश के अन्य अभयारण्यों के तुलना में पेड़-पौधेे, जीव-जंतुओं से काफी समृद्ध भी है। यहां की जैव समृद्धताएं, इस अभयारण्य को अपने आप में अलग ही पहचान दिलाती है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए अभी काफी आस है। वहीं इस जंगल में सीतामाता का मंदिर है, किंवदंति है कि यहां त्रेता युग में सीता ने वनवास भोगा था। इतिहासविद् भी यहां वाल्मीकि आश्रम, लव-कुश के के बारे में बताते है। हालांकि यह अभी गर्त में है। लेकिन यहां की जैव समृद्धताएं, इस अभयारण्य को प्रदेश स्तर पर अपने आप में अलग ही पहचान दिलाती है। यहां की जलवायु को देखते हुए वन विभाग, सरकार और जनप्रतिनिधि भी इसे पर्यटन दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। यहां काफी विकास कार्य कराए जा रहे है। यहां आवागमन के साधन और मार्ग के कारण पर्यटकों की संख्या भी कम ही है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए अभी स्थानीय स्तर पर भी काफी कुछ प्रयास बाकी है।
सीतामाता अभयारण्य प्रतापगढ़ की शान है। जो जिला स्तर पर ही नहीं, प्रदेश स्तर का पर्यटक स्थल बन सकता है। ये अभयारण्य ही नहीं बल्कि यहां सीतामाता का प्रसिद्ध स्थान भी है। जिसे प्रचारित किया जाए तो यहां देश-विदेश से पर्यटक भी काफी संख्या में बढ़ सकते हैं। उदयपुर व चित्तौडगढ़़ में पर्यटक भरपूर संख्या में आते हैं। इन दोनों स्थानों से सीतामाता मंदिर की दूरी भी ज्यादा नहीं है। ऐसे में यह स्थान अच्छा ट्यूरिस्ट स्पॉट बन सकता है। इसके लिए विभाग और सरकार की ओर से गत वर्षोंं से काफी प्रयास किए जा रहे है। लेकिन पर्यटकों को लुभाने और यहां तक लाने के लिए यह प्रयास काफी कम है।
सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों से सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह अभयारण्य उदयपुर-प्रतापगढ़ राज्य राजमार्ग पर उदयपुर और चित्तौडगढ़़ से क्रमश: 100 और 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन चित्तौडगढ़़ है। जबकि निकटतम हवाई अड्डा 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उदयपुर है। इन सभी स्थानों से अभयारण्य तक सडक़ मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
सीतामाता मंदिर की यह है मान्यता
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि त्रेता युग(रामायण काल) में राम ने सीता को वनवास भेजा था। जिसके बाद सीता ने यहीं अवस्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में निवास किया था। उस समय उसके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म भी यहीं वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। यहां तक कि सीता अंतत: जहां भू-गर्भ में समा गई थी। वह स्थल भी इसी अभयारण्य में स्थित है। सहस्त्रों वर्ष से सीता से प्रतापगढ़ के रिश्तों के संबंध में लोक-मान्यताओं के चलते यह अभयारण्य का नामकरण सीता के नाम पर किया गया। इसी अभयारण्य में सीतामाता का मंदिर, महर्षि वाल्मीकि आश्रम और लव-कुश बाग, वर्षों पुराना बरगद का पेड़ को इसी से जोड़ते हुए देखा जाता है। इसी स्थान पर लव और कुश ने अश्वमेध के घोड़ों को पकड़ा था और राम को युद्ध के लिए ललकारा था। ये मान्यता है कि वह पेड़ जिस पर हनुमान जी को बांधा गया था, आज भी यहां पर मौजूद हैं। यहां पहाड़ी पर स्थित सीता मंदिर उस प्राचीन मान्यता का द्योतक है। जिस समय माता सीता धरती में समाई तब यह पहाड़ दो हिस्सों में फट गया। लोग इस स्थान को युगों से पवित्र मानते आ रहे हैं। यहां मंदिर परिसर, सीता बाड़ी में प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मेला आयोजित होता है। सीता बाड़ी दुनिया का एकमात्र मंदिर है जिसमें हिंदू देवी सीता माता की एकल प्रतिमा है। इतने सारे पौराणिक स्थानों के होने के कारण इस इलाके का नाम सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य रखा गया है।
दो जून 1979 में अभयारण्य की अधिसूचना
सीतामाता अभयारण्य में जैव विविधता को देखते हुए इसको अभयारण्य घोषित करने के लिए दो जून 1979 को अधिसूचना जारी हुई थी। इसके बाद 19 अप्रेल 1989 में राज्यपत्र में इस संबंध में प्रकाशन हुआ था। इसके बाद से ही इस अभयारण्य को नेशनल पार्क घोषित करने के लिए प्रयास किए जा रहे है।
सीतामाता अभयारण्य की भौगोलिक स्थिति
सीतामाता अभयारण्य 423 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ वनाच्छादित भू-भाग है। जो अरावली, विंध्याचल व मालवा के पठार के बीच अवस्थित हैं। इससे यहां पर उत्तर, दक्षिण व पश्चिम क्षेत्रों में पाए जाने वाले जैव विविधता का संगम होता है। इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 280 से 600 मीटर है। इस अभयारण्य में तीनों प्रकार के एवरग्रीन, सेमी एवरग्रीन व पतझड़ वाले वन क्षेत्र भी पाए जाते हैं। इसका सबसे अधिक क्षेत्र 335.62 वर्ग किलोमीटर प्रतापगढ़ जिले में आता है। जबकि चित्तौडगढ़़ जिले में 79.54 वर्ग किलोमीटर व उदयपुर जिले में 7.77 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही है। अभयारण्य में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं।
इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 756 मिमी होती है। सर्दियों के दौरान तापमान 6 से 14 डिग्री सेल्सियस और गर्मियों में 32 से 45 डिग्री के बीच होती है।
दुर्लभ जड़ी-आठ सौ किस्मों के पेड़-पौधे
सीतामाता अभयारण्य में करीब आठ सौ प्रकार के विशालकाय से लेकर छोटे पेड़-पौधों पाए जाते हैं। जबकि 330 जड़ी-बूटियों की पहचान हो चुकी है। इनमें से दुर्लभ जड़ी-बुटियों की 33 प्रजातियां तो केवल यहीं पाई जाती है। अभी तक वन विभाग ने इसमें करीब साढ़े सात सौ प्रकार के पेड़-पौधों की पहचान कर ली है। इसके साथ ही यहां पर अब तक 2 सौ से अधिक औषधीय पादप की पहचान हो चुकी है। जबकि अन्य कई जड़ी-बुटियों की पहचान अभी बाकी है।
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