ऊसर होते जा रहे कांठल के खेत
प्रतापगढ़Published: Dec 04, 2020 07:49:13 am
प्रतापगढ़. कांठल में गत कुछ वर्षों से गोबर की खाद का कम उपयोग और रासायनिक खाद, कीटनाशक का अधिक उपयोग होने लगा है। ऐसे में यहां की मिूट्टी भी ऊसर होती जा रही है। ऐसे में उत्पादन में कमी और खाद्यान्न की गुणवत्ता भी कम होने लगी है। जैविक खाद का उपयोग कम होने के कारण कई खेतों की मिट्टी भी बंजर होती जा रही है।
ऊसर होते जा रहे कांठल के खेत
-गोबर की खाद और जैविक खाद का उपयोग कम
-मिट्टी का कार्बनिक स्तर पर भी हो गया 0.2 से कम
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प्रतापगढ़.
कांठल में गत कुछ वर्षों से गोबर की खाद का कम उपयोग और रासायनिक खाद, कीटनाशक का अधिक उपयोग होने लगा है। ऐसे में यहां की मिूट्टी भी ऊसर होती जा रही है। ऐसे में उत्पादन में कमी और खाद्यान्न की गुणवत्ता भी कम होने लगी है। जैविक खाद का उपयोग कम होने के कारण कई खेतों की मिट्टी भी बंजर होती जा रही है। कृषि विभाग के अनुसार मिट्टी की हो रही जांच में सामने आया है कि मिट्टी का कार्बनिक स्तर 0.2 प्रतिशत से भी कम हो गया है। जबकि उपयुक्त खेती के लिए यह मात्रा 0.75 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। जिससे यहां की जमीन अनुपजाऊ बनती जा रही है। ऐसे में अब कृषि विभाग भी सावचेत होता जा रहा है। जिसमें किसानों को यही सलाह दी जाती है कि वे अपने खेतों में गोबर की खाद, जैविक खाद का अधिक उपयेाग करें।
– किसानों को अपनाने होंगे जैविक खेती के विकल्प
लगातार ऊसर होती जा रही है। ऐसे में इसे सुधार के लिए विकलप् अपनाने होंगे। जिसमें प्रमुख रूप से गोबर की खाद का उपयोग करना आवश्यक है। वहीं जैविक खाद के विकल्प को भी अपनाना होगा। जिसमें जीवामृत से भी जतमीन को सुधार कर उपजाऊ बनाया जा सकता है। यह सूक्ष्म जीवाणुओं से तैयार किया जाता है। जिसमें गौमूत्र पांच से दस लीटर, गोबर दस किलो, गुड़ एक से दो किला, दलहन आटा एक से दो किलो, 10 लीटर छाछ, एक मु_ी जीवाणुयुक्त मिट्टी, पानी दो सौ लीटर को एक साथ मिलाकर ड्रम में मिलाकर 48 घ्ंाटे तक रखना होता है। इसके बाद छानकर सिंचाई के साथ फसल में प्रयोग कर सकते है। छिडक़ाव से भी फसलों पर प्रयोग करने से कीट एवं बीमारियों से बचाव होता है। जीवामृत को अच्छी तरह से सड़ाने के बाद छिडक़ाव करने से रोजड़े भी खेतों से दूर रहते है। इस प्रकार तैयार जीवामृत की गंध से रोजड़े खेत के पास नहीं जाते है। इसके अलावा किसान अपने खेतों में नीम से तैयार किए जाने वाले कीटनाशक और उर्वरकों का भी उपयोग करना होगा।
पराली जलाने से भी जलते है कार्बनिक पदार्थ
अमुमन किसान अपनी फसल कटाई के बाद खेतों में अवशेषों को जला देते है। जो खेती के लिए काफी नुकसानदायक है। इससे मिट्टी में मौजूद जीवाणु एवं कार्बनिक पदार्थ जलकर नष्ट हो जाते है। इस कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। गौरतलब है कि जिले में गेहूं की फसल कटाई कें बाद खेतों में आग लगाकर अवशेष जलाने की परम्परा है। जो खेतों को बंजर बना रहे है। ऐसे में पराली को नहीं जलाकर इसे जैविक के रूप में परिवर्तन कर खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
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एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन भी आवश्यक
खेतों में पोषक तत्वों की पूर्ति करने वाले सभी संसाधन जिसमें खाद, उर्वरक, जैव उर्वरक, वर्मी कम्पोस्ट, फसल अवशेष का समुचित प्रयोग करना होगा। इसके तहत दलहनी फसलें राइजोबियम नामक जीवाणु के सहयोग से वायुमंडल का नाइट्रोजन पौधों की जड़ों में संग्रहित करने में सक्षम होती है। राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार कर बुवाई करने पर इन फसलों की उपज में सार्थक वृद्धि होती है। अनाज एवं सब्जी वाली फसलों में एजोटोबेक्टर, एजोस्पिरिलम तथा फास्फोरस के घुलनशील बनाने वाले जैव उर्वरकों का आवश्यक मात्रा में प्रयोग करना होगा। तरल जैव उर्वरक उपलब्ध है जो पाउडर वाले जैव उर्वरकों की अपेक्षा काफी अधिक फायदेमंद है। वर्मी कम्पोस्ट फसल अवशेषों एवं गोबर की खाद को केंचुओं की मदद से कम्पोस्ट तैयार की जाती है। जो सामान्य कम्पोस्ट से अच्छी होती है। फास्फो सल्फो नाइट्रो कम्पोस्ट सामान्य कम्पोस्ट से पांच गुना अधिक पोषक तत्वों की पूर्ति करता है। जो फसल अवशेषों, गोबर की खाद, जिप्सम, रॉक फास्फेट एवं यूरिया से तैयार करते है। जो फसलों के पोषक तत्वों के साथ मिट्टी का कार्बनिक स्तर बनाए रखने में काफी उपयुक्त है।
=:=:किसानों को अभी से सावचेत होना है
यह सही है कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से खेतों में कार्बनिक पदार्थ की कमी होती जा रही है। इसके लिए किसानों को अभी से सावचेत होना होगा। जिसमें गोबर की खाद और जैविक पर अधिक जोर देना होगा। हालंकि कुछ प्रगतिशील किसान इसे समझ चुके है। जिले में कुछ किसान जैविक बनाकर खेतों में उपयोग कर रहे है। ऐसे में सभी किसानों को इसे अभी से समझना होगा।
मनोहर तुषावरा, उप निदेशक, कृषि विस्तार प्रतापगढ़
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