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पहाडिय़ों में भंवरों के छातों से कहलाई भंवरमाता

locationप्रतापगढ़Published: Apr 02, 2020 09:03:01 pm

Submitted by:

Devishankar Suthar

छोटीसादड़ी. नगर से दक्षिण दिशा में 3 किमी दूर प्रकृति के मनोरम सौंदर्य के बीच स्थित है प्रसिद्ध भंवरमाता मंदिर। बारिश के दिनों में कलकल बहता झरना, हरितिमा से आच्छादित क्षेत्र और देवी की मनोहारी छवि यहां आने वालों का बरबस ही मनमोह लेती है। यह स्थान पहले कभी लक्ष्मी स्वरूपा माता ब्राह्मणी देवी के नाम से प्रसिद्ध था, जो कालांतर में भंवरमाता हो गई।

पहाडिय़ों में भंवरों के छातों से कहलाई भंवरमाता

पहाडिय़ों में भंवरों के छातों से कहलाई भंवरमाता


छोटीसादड़ी की अरावली पर्वतमालाओं में है मंदिर
कांठल की धरोहर
ललित औदिच्य ञ्च छोटीसादड़ी. नगर से दक्षिण दिशा में 3 किमी दूर प्रकृति के मनोरम सौंदर्य के बीच स्थित है प्रसिद्ध भंवरमाता मंदिर। बारिश के दिनों में कलकल बहता झरना, हरितिमा से आच्छादित क्षेत्र और देवी की मनोहारी छवि यहां आने वालों का बरबस ही मनमोह लेती है। यह स्थान पहले कभी लक्ष्मी स्वरूपा माता ब्राह्मणी देवी के नाम से प्रसिद्ध था, जो कालांतर में भंवरमाता हो गई। यहां नियमित रूप से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में देवी की त्रिमूर्तियां – शक्तिस्वरूपा भंवर माता, मां काली एवं मां सरस्वती की आकर्षक व चमत्कारी मूर्तियां स्थापित है। तीनों की स्थापना एक साथ की गई थी। लेकिन मध्य में ब्रह्मणी देवी थी। इसे ही बाद में भंवर माता के नाम से जाना गया। महामाया भंवर माता मंदिर प्राचीन समय से ही मेवाड़ -मालवा के लोगो की आराध्य देवी रही है। यहां हर समय भक्तों का यहां ताता लगा रहता है। चारधाम की यात्रा करने जाने वाले यात्री यहां की यात्रा अवश्य करते है।
७० फीट ऊंचाई से गिरता है झरना: भंवरमाता शक्तिपीठ का भाौगौलिक परिदृश्य अत्यंत ही आकर्षक है। यहां ऊंची ऊंची कठोर चट्टानों के बीच ७० फीट की ऊंचाई से झरना गिरता है। बारिश के दिनों में यह झरना इतना वेग से गिरता है कि इसकी कलकल ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई देती है। बारिश की बूंदों का सानिध्य पाकर पेड़ पौधे अपने सौंदर्य को परिपूर्णता प्रदान करते हैं। मंदिर के ईशान खंड के उध्र्व भाग में भैरव की स्थापना की गई। पश्चिम की ओर केवड़ा की नाल में हनुमान की। दक्षिण की ओर नीचे की तरफ शिव की स्थापना की गई।
मेवाड़ व मालवा का प्रमुख पर्यटन स्थल: अरावली पर्वतमाला में स्थित भंवर माता मंदिर धार्मिक स्थल ही नहीं वरन देशी पर्यटन स्थल भी है। यहां की प्राकृतिक छटा मेवाड़ा और मालवा के सैलानियों को अपनी ओर खींच लाती है। यहां अपनी आराध्यदेवी के दर्शन करने व प्राकृतिक सोंदर्य का लुत्फ उठाने के लिए हर समय क्षेत्र ही नहीं आसपास के राज्यों के साथ देशभर से हजारों श्रृद्धालुओं की आवाजाही हर समय लगी ही रहती है। यहां साल में तीन मेले भरते हैं। दो बार नवरात्रों में और एक हरियाली अमावस्या पर। श्री भंवर माता दर्शनीय स्थल विकास एवं सेवा ट्रस्ट ने विगत वर्षो में यहां धर्मशाला आदि बनवाकर रंगरोगन कराया है। भंवरमाता को तीर्थ स्थल के साथ धार्मिक व पर्यटक स्थल घोषित किए जाने की आवश्यकता है। अगर यहां मंदिर पर धार्मिक आयोजनों के साथ प्रकृति प्रेमी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ध्यान देकर कार्य करे तो सैंकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल सकता है।
मनोकामना पूरी होने पर करते हैं यह: मंदिर में बलि प्रथा पर पूरी तरह रोक है। लेकिन जिन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है, वे यहां मुर्गे छोडक़र जाते हैं। यही कारण है कि मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही मुर्गे विचरण करते हुए दिख जाते हैं।
शिलालेख से मिलती कई जानकारियां
छोटीसादड़ी से बस थोड़ी ही दूरी स्थित भवर माता मंदिर का निर्माण आज से 15 सौ वर्ष पहले चंद्रवंशीय राजा चंद्रसेन ने करवाया था। यह जानकारी तत्कालीन राजकवि सोम द्वारा मंदिर के अंदर उत्कीर्ण करवाए गए शिलालेख से मिलती है। पुजारी युधिष्ठिर शर्मा ने बताया कि इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सन ४९१ संवत 541 में माघ सुदी तेरस के दिन कश्यप कुल के ब्राह्मण परिवार की ओर से की गई थी। पहले यह मंदिर माता सिद्ध शाकंभरी के नाम से प्रसिद्ध था। बाद में बहणी नाम पड़ा, क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए इसका नाम भंवर माता पड़ गया। इस क्षेत्र में मधुमक्खियों के छत्ते (स्थानीय बोली में भंवरे ) खूब थे। आज भी जंगल में जगह-जगह पेड़ों पर दिखाई दे जाते हैं। एेसे में मंदिर का नाम भंवरमाता पड़ गया।
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