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दिलों का मेला है सौ साल पुराना यह मेला…

locationप्रतापगढ़Published: Nov 28, 2017 12:29:40 am

दुकानदार बोले : मेले ने सिखाया मिल-जुलकर रहना

patti mela

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प्रतापगढ़. जनपद में एक ऐसा मेला लगता है जो सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भूत मिशाल है। इस मेले में दुकान लगाने के लिये भी दुकानदारों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता, हां अपनी स्वेच्छा से वह रामचंदी जरूर देते हैं। यहां हम बात कर रहे हैं जनपद के पट्टी में लगने वाले दशहरा मेले की। यह मेला इस वर्ष अपने आयोजन का शतक पूरा कर रहा है।
मेला समिति में मुसलमान भी

मेले की आयोजन समिति में मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल रहते हैं और पूरे उत्साह के साथ बढ़-चढ़कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं। समरसता का पाठ पढ़ाने वाले इस मेले की उम्र के साथ रौनक भी बढ़ती गयी अैर चाहने वाले भी। खाने-पीने के स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ ही मेले में घर-गृहस्थी के सारे सामान मिलते ही हैं, यह मेला तनावपूर्ण होते रिश्तों के दौर में आपसी सद्भाव का बड़ा संदेश भी देता है। कहना गलत नहीं होगा कि यह केवल मनोरंजन एवं गृहस्थी के सामानों का नहीं, दिलों का भी मेला है।
मेले से सीखा मेल-जोल से रहना
पिछले 30 वर्ष से जूते की दुकान लेकर आ रहे चप्पल व्यवसायी मोहम्मद रईस ने कहा कि यहां अच्छी आमदनी हो जाती है। उन्होंने कहा कि मेला समिति का सहयोगी रवैया एवं आपसी सद्भाव व सहयोग देखकर मेल-जोल से रहने की भी सीख मिली। कपड़ा व्यवसायी चुन्नू लाल ने कहा कि उनके पिता जी भी मेले में दुकान लगाते थे, उनके बाद इस परंपरा का निर्वहन वह कर रहे हैं। हर साल दशहरा मेले का इन्तजार रहता है। कई व्यवसायियों ने कहा कि पट्टी के मेले में सुरक्षा का एहसास होता है। अवैध वसूली नहीं होने एवं सौहार्दपूर्ण माहौल के कारण वो ना चाहते हुए भी मेले में दुकान लगाने को विवश हो जाते हैं। मेले में दुकान लगाये बिना दिल नहीं मानता।
रामलीला होती है मेलेे काा मुख्य आकर्षण

मेले का मुख्य अकर्षण रामलीला होती है। पट्टी के मेले का भरत मिलाप प्रसिद्ध है। मेला पूरी तरह से व्यवस्थित है। एक तरफ खाने पीने की दुकानें हैं, तो दूूूूसरी तरफ प्रसाधन की।
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