चिलबिला निवासी शंकरलाल ने इस मामले में कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया है कि चिलबिला में भवन संख्या 202 व 228 उनके पूर्वज रामदयाल के नाम दर्ज था। आरोप है कि बीच में बिना किसी आदेश के मोतीलाल पुत्र शिव बदन ने नगरपालिका में नामांतरण बही में अपना नाम दर्ज करवा लिया। वर्ष 2006 में प्रार्थना पत्र देने पर नगर पालिका के तत्कालीन प्रशासक ने जांच करके 26 सितंबर 2006 को मोतीलाल का नाम निरस्त करके शंकरलाल का नाम अंकित कर दिया।
इन सभी पर आरोप है कि मोतीलाल की मृत्यु होने के बाद पूर्व सभासद श्यामसुंदर टाऊ, रवि गुप्ता, घनश्याम, सन्नो देवी ने उक्त भवन को हड़पने की नीयत से पालिकाध्यक्ष हरिप्रताप सिंह को मिला लिया। नामांतरण अभिलेख में हेराफेरी करके हरि प्रताप सिंह ने मौजूदा कार्यकाल समाप्त होने के बाद प्रशासक के आदेश को निरस्त करके दूसरा आदेश बैकडेट में 31 मई,2017 को जारी कर दिया। सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष को सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि अगर 31 मई,2017 को कोई आदेश हुआ था तो उसे अभिलेखों में 17 अगस्त,2017 तक क्यों नहीं दर्ज किया गया। लिपिक ने यह रिपोर्ट क्यों दिया कि 14 अगस्त तक पत्रावली पालिकाध्यक्ष के कब्जे में है। जबकि ईओ ने रिपोर्ट दी है कि अध्यक्ष हरिप्रताप सिंह का कार्यकाल 8 अगस्त,2017 को समाप्त हो चुका था। इस पर सीजेएम पवन कुमार श्रीवास्तव ने कोतवाल को नगर पालिका के निवर्तमान अध्यक्ष हरिप्रताप सिंह,श्यामसुंदर टाऊ,रवि गुप्ता,घनश्याम,सन्नो देवी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करें। उधर इसी मामले में सन्नो देवी द्वारा दायर याचिका को कोर्ट ने निरस्त कर दिया।
इस मामले में निवर्तमान नपाध्यक्ष हरि प्रताप सिंह का तर्क है कि नगरपालिका अध्यक्ष एक संवैधानिक पद है,जो आदेश करती है। उस पर यदि किसी पक्ष को आपत्ति होती है तो वह अपील में जाता है। इस मामले में कोर्ट के आदेश के बाद मुकदमा दर्ज हुआ है और उसी के आदेश पर विवेचना भी होगी। उसमें जो भी सही होगा,सामने आ जाएगा।
BY- Sunil Somvanshi