इस सीट पर 2014 की मोदी लहर में भाजपा के सहयोगी दल अपना दल (अविभाजित) के टिकट पर पहली बार कुंवर हरिवंश सिंह जीतकर आए थे। इस बार सपा-बसपा गठबंधन का दावा है कि प्रतापगढ़ सीट वो ही जीतेंगे। हालांकि यह दावा जितनी आसानी से कर दिया गया है उसके हकीकत बनने में उतनी ही मुश्किलें हैं। यहां सपा-बसपा गठबंधन की लड़ाई केवल भाजपा से ही नहीं बल्कि राजा भइया की पार्टी जनसत्ता दल से भी होगी और कांग्रेस के आने से मुकाबला चतुष्कोणीय होगा।
अशोक त्रिपाठी 2017 में प्रतापगढ़ सदर विधानसभा से बसपा के टिकट पर विधायकी का चुनाव भी लड़ चुके हैं। वह तीसरे नंबर पर थे। इस बार भी बसपा इन्हीं पर दांव खेल रही है। अशोक त्रिपाठी को विधानसभा चुनाव के दौरान ही जिले का ब्राह्मण समाज (सामाजिक भाईचारा) का जिला संयोजक भी बनाया गया था। मूल रूप से पेशे से व्यवसायी हैं अशोक त्रिपाठी। विधानसभा चुनाव में ही ये सीधे रजनीति में उतरे। इन्हें मायावती का करीबी भी कहा जाता है। कई बार अफवाह उड़ी कि उनका टिकट कट जाएगा, लेकिन आखिर में ये टिकट बचाने में कामयाब रहे। अशोक त्रिपाठी को विधानसभा और लोकसभा दोनों में पहले ही प्रत्याशी घोषित कर दिया गया था।
By Sunil Somvanshi
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