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इलाहाबाद हाईकोर्ट: थाना अध्यक्ष से बदसलूकी करने वाले कांस्टेबल के खिलाफ बर्खास्तगी आदेश किया रद्द, जाने वजह

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जांच अधिकारी की ओर से बिल्कुल गलत निर्णय बताते हुए पुलिस अधीक्षक, ललितपुर द्वारा उन्हें सेवाओं से बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया। इस मामले में सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अदालत ने पुलिस उप महानिरीक्षक, झांसी रेंज, झांसी और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा उनकी सेवा से बर्खास्तगी की पुष्टि करने वाले आदेशों को भी रद्द कर दिया।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट: थाना अध्यक्ष से बदसलूकी करने वाले कांस्टेबल के खिलाफ बर्खास्तगी आदेश किया रद्द, जाने वजह

इलाहाबाद हाईकोर्ट: थाना अध्यक्ष से बदसलूकी करने वाले कांस्टेबल के खिलाफ बर्खास्तगी आदेश किया रद्द, जाने वजह

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल के बर्खास्तगी मामले की सुनवाई करते हुए आदेश को रद्द कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश पुलिस के कांस्टेबल के खिलाफ पारित आदेश को खारिज कर दिया है। बता दें कांस्टेबल को कथित तौर पर सेवा से हटा दिया गया था, क्योंकि उसने स्टेशन अधिकारी के साथ नशे की हालत में बदसलूकी की थी। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि कांस्टेबल नशे की हालत में था, इसलिए याचिकाकर्ता को शराब की गंध आ रही थी, जिसकी वजह से उनके बीच बहस हुई।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जांच अधिकारी की ओर से बिल्कुल गलत निर्णय बताते हुए पुलिस अधीक्षक, ललितपुर द्वारा उन्हें सेवाओं से बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया। इस मामले में सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अदालत ने पुलिस उप महानिरीक्षक, झांसी रेंज, झांसी और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा उनकी सेवा से बर्खास्तगी की पुष्टि करने वाले आदेशों को भी रद्द कर दिया।

इसके साथ ही अदालत ने यह भी नोट किया कि उस समय न तो कोई यूरिन जांच की गई और न ही कोई ब्लड टेस्ट किया गया, जब यह आरोप लगाया गया कि कांस्टेबल ने शराब के नशे में स्टेशन अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया था। कोर्ट ने कहा कि जिस क्षण नशे के संबंध में आरोप लगाया गया उस वक्त या तो यूरिन टेस्ट होना चाहिए था या ब्लड टेस्ट किया जाना चाहिए था। इन दो टेस्ट के अभाव में जांच अधिकारी द्वारा रिपोर्ट गलत हो जाती है।

कोर्ट ने कहा जब अनुशासनात्मक प्राधिकारी याचिकाकर्ता को दंडित कर रहा था तो उसे इस तथ्य पर विचार करना चाहिए था कि याचिकाकर्ता ने किसी भी तरह की गतिविधि में शामिल नहीं किया, जिसे अनुशासनहीनता" कहा जा सकता है। इसके साथ ही यह निर्देश देते हुए कि याचिकाकर्ता सभी परिणामी लाभों का हकदार होगा और न्यायमूर्ति ने रिट याचिका को अनुमति दे दी गई।