यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने बागपत निवासी कोमल की अपील खारिज करते हुए दिया है। इस मामले में कोमल के पति अरविंद के अधिवक्ता महेश शर्मा का कहना था कि यह पूर्णरूप से स्थापित है कि किसी नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा का मामला तय करते समय केवल एक ही बिंदु पर विचार करना होता है कि नाबालिग का भविष्य किसके पास सुरक्षित है। ऐसे मामलों में अदालत की विशेष जिम्मेदारी होती है कि वह यह जरूर देखे कि बच्चे का हित कैसे सुरक्षित रहेगा। अदालत को सिर्फ इसी एक बिंदु पर विचार करके निर्णय देना चाहिए।
मामले के तथ्यों के अनुसार 22 फरवरी 1999 को विवाह बंधन में बंधे कोमल व अरविंद के दो बच्चे नकुल (आठ वर्ष) व छवि (छह वर्ष) हैं। संबंधों में दरार पड़ने के काराण उनका अलगाव हो चुका है और बच्चे पिता के पास हैं। कोमल ने बच्चों की अभिरक्षा के लिए पारिवारिक अदालत में मुकदमा किया।कहा कि बच्चे छोटे हैं, मां उनकी नैसर्गिक अभिभावक है इसलिए बच्चों की अभिरक्षा उसे दी जाए। अरविंद ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा कि वह बच्चों का भरणपोषण करने में सक्षम है। दोनों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहा है और मां के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है। उसने अपने भरण पोषण के लिए ही मुकदमा किया है। कोर्ट ने दोनों नाबालिग बच्चों से बातचीत की तो उन्होंने पिता के साथ रहने की इच्छा जताई। इसके बाद पापवारिक अदालत ने बच्चों को पिता की अभिरक्षा में सौंपने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के इस निर्णय को सही ठहराया है।
BY- Court Corropondence