यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी. केशरवानी ने गबन राशि की वसूली व पेंशन आदि जब्त करने के आदेश के खिलाफ सहायक एकाउन्टेंट राज बहादुर माथुर की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। मालूम हो कि 16 फरवरी 1985 से 30 जून 1995 के दौरान पेंशन मद में करोड़ों का भुगतान कर अधिकारियों ने हजम कर लिया। 1999 की ऑडिट रिपोर्ट में इस घोटाले का खुलासा हुआ। चार करोड़ 75 लाख 80 हजार रूपये की बंदरबांट कर ली गयी। 900 पेंशनर थे और 2800 लोगों को पेंशन का भुगतान कर दिया गया। कई लोगों को एक से अधिक बार एक समय में भुगतान किया गया। सेन्ट्रलाइज्ड कैडर सहित निगम के 19 अधिकारियों की जांच की गयी। के.के.शर्मा को दोषी करार दिया, प्रतिकूल प्रविष्टि सहित दो इन्क्रीमेंट रोक दिये गये। याची पर भी कार्रवाई की गयी।
कोर्ट ने करोड़ों के घोटाले की जांच एक से दूसरी एजेंसी को सौंपने व जांच लटकाये रखने की आलोचना की और कहा कि विजिलेन्स ने अधिकारियों को बचाने का प्रयास किया। घटना की प्राथमिकी भी दर्ज करायी गयी। पुलिस को जांच करने नहीं दिया गया।
नौ साल बाद विजिलेन्स रिपोर्ट शासन को भेजी गयी, मुख्य सचिव ने 13 दिसम्बर 1917 को हाईपावर कमेटी गठित कर दी। 19 आरोपियों में से 11 की मौत हो चुकी है, बचे 8 आरोपियों में से 7 सेवानिवृत्त हो चुके हैं। 31 मई 2018 को प्रमुख सचिव नगर विकास ने एसआईटी जांच बैठा दी है। एसआईटी को कहा गया है कि वह जीवित आरोपियों का पता लगाये, जीवित आरोपियों की सम्पत्ति की जांच करे। कोर्ट ने कहा कि सरकार एसआईटी से जांच करा रही है। किन्तु जांच का अन्त हो और तीन माह में जांच पूरी कर तुरन्त दोषियों पर कार्रवाई की जाये।
BY- Court Corrospondence