प्रयागराज

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा-कानूनी किताबों का प्रकाशन राजकीय मुद्रणालय से क्यों नहीं ?

राजकीय मुद्रणालय के बजाय प्राइवेट प्रकाशन से महंगी किताबें छापवाई जाती है

प्रयागराजFeb 28, 2020 / 08:11 pm

प्रसून पांडे

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा-कानूनी किताबों का प्रकाशन राजकीय मुद्रणालय से क्यों नहीं?

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विधायिका व राज्य प्राधिकारियों द्वारा बने नियम कानून राजकीय मुद्रणालय के बजाय प्राइवेट प्रकाशन से महंगी किताबें छपवाते के मामले में जनहित याचिका कायम की है और प्रदेश के मुख्य सचिव को कानून की किताबों के सरकार द्वारा नियमित प्रकाशन, वितरण व बिक्री के उठाये गए कदमों की जानकारी के साथ व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। याचिका की सुनवाई 23फरवरी को होगी। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने विनोद कुमार त्रिपाठी की विशेष अपील की सुनवाई के दौरान उठे सवालों पर जनहित याचिका कायम करते हुए दिया है।

अपील की सुनवाई अलग से 5मार्च को होगी। याचिका पर राज्य सरकार के अधिवक्ता राजीव सिंह ने पक्ष रखा। बहस के दौरान दोनो पक्षों की तरफ से अधिवक्ताओं द्वारा पेश किताबों में उपबंधों मे अंतर देख कोर्ट ने राजकीय मुद्रणालय प्रयागराज के निदेशक को तलब किया। उन्होंने बताया कि राजकीय प्रेस कानूनी किताबे प्रकाशित कर रहा है और विक्री की खिड़की खोली है। किताबों की छपाई नियमित होने के बारे में संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। जब कि सरकार से नियमित छिपायी किये जाने के निर्देश है। सरकारी किताबें उपलब्ध न होने के कारण अधिवक्ता प्राइवेट प्रकाशन से महंगी किताबें खरीद कर कोर्ट में पेश कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि सरकार ने कानूनी पुस्तकों की छपाई प्राइवेट कंपनियों को सौंप दी है। कोर्ट ने सरकार को सरकारी प्रेस से नियमित प्रकाशन करने का निर्देश दिया है और व्योरा पेश करने का निर्देश दिया है।

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