
Mahakumbh 2025: शैव अखाड़ों में कई परंपराएं एक-दूसरे से भिन्न हैं। सभी शैव अखाड़ों की छावनियों में केवल धर्म ध्वजा फहराई जाती है, लेकिन महानिर्वाणी अखाड़े में धर्म ध्वजा के साथ एक और ध्वजा फहराई जाती है। अखाड़ा पदाधिकारियों के अनुसार, यह दूसरी ध्वजा अखाड़े के गौरव और संघर्ष को दर्शाती है। कुंभ के दौरान छावनी स्थापित होने पर धर्म ध्वजा के साथ इस पर्व ध्वजा को भी फहराया जाता है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, महानिर्वाणी अखाड़े के महंत यमुना पुरी बताते हैं कि मुगल काल में कई बार अखाड़ों को युद्ध करने पड़े। 1662 में बनारस में महानिर्वाणी अखाड़े के साधु-संतों और नागाओं ने मुगल सेना के खिलाफ युद्ध किया। इससे पहले प्रयाग में कुंभ स्नान को रोकने की कोशिश भी हुई थी। महानिर्वाणी अखाड़े ने, जिसका मुख्यालय प्रयाग में है, इस विरोध का नेतृत्व किया। अटल अखाड़ा भी इस संघर्ष में उनके साथ था। उनके प्रयासों के कारण ही अखाड़े कुंभ स्नान कर सके।
महानिर्वाणी अखाड़े के साधु-संतों ने अपने सभी संघर्ष इस पर्व ध्वज के तले किए। महंत यमुना पुरी के अनुसार, पर्व ध्वज को अखाड़े ने अपने संघर्षों की पहचान के रूप में अपनाया और धर्म ध्वजा के समान मान्यता दी। यह परंपरा लगभग 375 साल पुरानी है, तभी से कुंभ में छावनी स्थापित होने पर धर्म ध्वजा के साथ पर्व ध्वजा भी फहराई जाती है।
पर्व ध्वज की ऊंचाई भी धर्म ध्वजा के बराबर, 52 हाथ होती है। अमृत स्नान के दौरान इस ध्वजा को पूरी शान के साथ निकाला जाता है। तीनों अमृत स्नान संपन्न होने के बाद ही धर्म ध्वजा की तरह पर्व ध्वजा की तनियां भी ढीली की जाती हैं।
Published on:
17 Jan 2025 10:09 am
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