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प्रयागराज

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कुलपति की जाँच रिपोर्ट सवालों के घेरे में,ऋचा सिंह ने लगाये गंभीर आरोप

पीड़ित महिला को क्यों नही बुलाया गया,कुलपति का पक्ष सार्वजानिक न करना बड़ा सवाल

प्रयागराजOct 09, 2018 / 01:43 pm

प्रसून पांडे

इलाहाबाद:इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति रतन लाल हांगलू को कथित आडियो और चैट मामले में क्लिनचिट दिए जाने के बाद कुलपति और विवि प्रशासन के खिलाफ आंदोलित छात्रों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। अवकाश प्राप्त न्यायाधीश अरुण टंडन की विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रकरण पर पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह ने कई सवाल उठाये है। ऋचा सिंह ने पत्रिका को जानकारी देते हुए लिखा की हमारे संदेह ने पुख्ता रूप ले लिया और स्पष्ट हो गया कि यह कमेटी जो पहले जांच समिति थी वह बाद में फैक्ट फाइंडिंग कमेटी में बदल गयी। जिसका असली नाम क्लीन चिट समिति लगता है।रिपोर्ट पढ़कर लगा कि समिति ने पहले से ही तय कर रखा था कि कुलपति को क्लीन चिट देनी है ।

महिला का बयान क्यों नही लिया गया
ऋचा सिंह ने जो अहम सवाल उठाये है उसमे कहा है की न्यायमूर्ति अरुण टंडन स्वयं विश्वविद्यालय के एक संघटक महाविद्यालय के प्रबन्ध तंत्र से जुड़े हैं। ऋचा के अनुसार और उनके बेटे सुप्रीम कोर्ट में विश्वविद्यालय के वकील के रुप में है। यह Conflict of interest का सीधा मामला है । जिसके चलते उन्हें कानूनी और नैतिक रुप से फैक्ट फाइंडिंग कमेटी में भी होने का अधिकार नहीं था। वही ऋचा सिंह ने यह भी स्पष्ट किया की जब पीड़ित महिला न्यायमूर्ति को पत्र लिखकर कहा था कि वे इलाहाबाद आकर व्यक्तिगत रूप से अपना बयान देना चाहती हैं ।तो फिर न्यायाधीश महोदय ने आख़िर क्यों और किस नियम के मुताबिक उसको मौका देना जरूरी नहीं समझा ।

वरिष्ठ प्रो ने दिया था इस्तीफा
ऋचा सिंह के अनुसार आटा की पूर्व अध्यक्ष महिला कल्याण बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष और जानी.मानी महिला एक्टिविस्ट प्रो रंजना कक्कड़ ने जब सार्वजनिक रूप से यह बात कही थी कि उनके पास उस पत्र की मूल प्रति है जिसमें हाँगलू पर महिला उत्पीड़न के आरोप लगाये गये थे । तब न्यायाधीश महोदय ने उनका पक्ष जानने की कोशिश क्यों नहीं की ।वह भी तब जब रंजना कक्कड़ जी ने इसी मुद्दे पर उसी संघटक कालेज के प्रबन्ध तंत्र से त्यागपत्र दे दिया था । जिसके स्वयं सदस्य न्यायमूर्ति अरुण टंडन भी हैं न्यायमूर्ति को कथित महिला के फोन नम्बर से आये मैसेज को बिना किसी जाँच के टंडन जी ने सही मान लिया ।तो फिर कुलपति के नम्बर से की गयी चैटिंग और वार्ता को उन्होंने किस आधार पर नकार दिया या उसकी जांच नहीं कि गयी ।

यह पूरी रिपोर्ट एक छलावा है
ऋचा सिंह ने कहा की कुलपति द्वारा पद के दुरुपयोग के मामले पर न यह रिपोर्ट कुछ कहती है न अभी तक कुलपति जी की तरफ़ से कोई स्पष्टीकरण दिया गया है।विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत इसे कुलपति तथा कथित महिला की आपसी सहमति का रिश्ता दिखाने की कोशिश की जा रही है । जो यह स्पष्ट करती है कि वाट्सअप चैट और वॉइस रिकॉर्डिंग कुलपति जी की है । जिसमें वह भले ही सामने वाली महिला के साथ सहमति से बात कर रहे हैं पर हमारी असहमति यह है कि कुलपति किसी भी व्यक्ति और महिला को अपने पद का लालच देकर लाभान्वित नहीं कर सकते।

शिक्षका के आरोप पर क्यों है चुप्पी
कल्याणी विश्वविद्यालय के पत्र की जांच और आरोप पर यूनिवर्सिटी मौन क्यों है जहां पहले भी कुलपति ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए लड़कियों को लोभ और लाभ देने की कोशिश की है। हमारा कुलपति जी से एक और सवाल है कि उनकी नज़र में अश्लीलता की परिभाषा क्या है । अगर जो वाट्सएप्प में है वो अश्लील नहीं है तो क्या है ।

सबसे बड़ा सवाल
न्यायाधीश टंडन ने संदेशवाहक भेजकर एफिडेविट पर महिला का बयान मँगवाया जबकि वे शिकायतकर्ता नहीं थीं । शायद उन्हें पूरे विवाद में एक पक्ष मानकर उनका बयान मँगवाया गया । ऋचा ने सवाल किया कि वीसी इस विवाद में दूसरा पक्ष थे । तब फिर महिला की ही तरह उनसे एफिडेविट पर बयान देने को क्यों नहीं कहा । यदि हलफनामे पर कुलपति का कोई बयान है तो उसे रिपोर्ट का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया ।

विश्वविद्यालय और कुलपति जी को देना होगा जबाब
जिस बीच कुलपति विश्वविद्यालय आते हैं तो किसी भी गंभीर स्थिति के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होंगे।लगातार विश्वविद्यालय द्वारा कुलपति का पक्ष रखा जाना कुलपति से मिलीभगत को दिखाता है। कुलपति रतन लाल हांगलू का सामने आकर जवाब न देना ,वॉइस टेस्ट और स्क्रीनशॉट की जांच की मांग न करना स्वयं उनके द्वारा उनको संदेह के घेरे में खड़ा करता है।ऋचा के अनुसार रजिस्ट्रार एन के शुक्ला और पीआरओ चितरंजन सिंह इस पूरे मामले में एक पक्ष हैं । महिला द्वारा उनसे जान का ख़तरा बताते हुए पुलिस को शिकायत दी गयी है । ऐसे में चितरंजन और रजिस्ट्रार द्वारा पूरे मामले पर बार -बार बयानबाज़ी और वीसी को बचाने के प्रयास उनके भी संदेह के घेरे में लाते हैं।

ऋचा सिंह ने कहा की हमारी मांग राष्ट्रपति जी एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय से है जांच के कमेटी गठित की जाए ।

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