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भ्रूण में बीमारियों का पता लगाती पीजीडी तकनीक

पीजीडी के दौरान भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित करने से पहले उसकी जांच की जाती है ताकि दंपति आईवीएफ प्रक्रिया के लिए अपना अगला कदम बढ़ाने का फैसला कर सके। 

Jul 15, 2017 / 05:47 pm

विकास गुप्ता

PGD technology

PGD technology

पीजीडी क्या है?
पीजीडी (प्री-इंप्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस) इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ ) से बने भ्रूण में मौजूद किसी प्रकार के आनुवांशिक या क्रोमोसोमल डिस्ऑर्डर का पता लगाने वाली अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है। पीजीडी के दौरान भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित करने से पहले उसकी जांच की जाती है ताकि दंपति आईवीएफ प्रक्रिया के लिए अपना अगला कदम बढ़ाने का फैसला कर सके। 

क्यों पड़ती है इसकी अवश्यकता?
हाल ही हुए अध्ययनों के अनुसार आईवीएफ के जरिए बने लगभग 25-30 प्रतिशत भ्रूण गर्भधारण के बाद पहले तीन महीने तक जीवित नहीं रहते। इसके अलावा आनुवांशिक व क्रोमोसोमल विकृतियों के कारण अधिकतर भ्रूणों को इंप्लांाट करना संभव नहीं होता। ऐसी स्थिति में एंब्रायोनिक स्क्रीनिंग जांचरक्षक की भूमिका निभाती है।

किसके के लिए जरूरी?
अगर किसी महिला की उम्र 35-40 वर्ष है और उसका पहले भी गर्भपात हो चुका है या पति-पत्नी में से किसी को आनुवांशिक डिस्ऑर्डर या किसी प्रकार की विकृति है तो उसे एंब्रायोनिक स्क्रीनिंग जांच करवानी चाहिए। इससे गर्भपात का खतरा कम होता है और जन्म लेने वाले बच्चेे में आनुवांशिक विकृतियां होने की आशंका भी काफी कम हो जाती है।

इसकी प्रक्रिया क्या है?
यह तकनीक असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) द्वारा विकसित भू्रणों में क्रोमोसोम की संख्या और उनमें पाई जाने वाली विकृतियों का पता लगाने और उनके निदान के लिए उपयोग की जाती है। इस नए जेनेटिक टूल्स की मदद से चिकित्सा विशेषज्ञ यह जान पाए हैं कि ऊपरी तौर पर सबसे अच्छी क्वालिटी के दिखने वाले कुछ भ्रूणों के साथ भी आनुवांशिक विकृति जुड़ी रह सकती है।

पीजीडी का भविष्य क्या है?
ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है जो आनुवांशिक जांच कराने की इच्छा रखते हैं। पीजीडी की तरह ही पीजीएस (प्रीइंप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग) का इस्तेमाल क्रोमोसोम की सामान्य संख्या का पता लगाने और उनमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को जांचने के लिए किया जा सकता है। इससे भू्रण धारण के दौरान होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है।

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