स्काउट लीडर लक्ष्मीकांत शुक्ला सलाह पर वह अपनी मां के ससाथ डीएम संजय कुमार खत्री से भी मिली और फिर अगले ही दिन डीएम के निर्देश पर सिटी मजिस्ट्रेट ने सबा को 25 हजार रुपये का चेक दे दिया। काठमांडू जाने और वहां रुकने के लिए होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. रमेश कुमार श्रीवास्तव ने सहयोग दिया। अब सबा आगे भी देश और जिले का नाम अंतराष्ट्रीय स्तर पर रोशन करना चाहती है।
मां करती है सिलाई का काम ग्रेपलिंग गेम के कोच रविकांत मिश्रा से उसने इस गेम के गुर सीखे। फतेहपुर में ही 29-30 जून को संपन्न हुए राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में सम्मान जनक स्थान बनाया। रायबरेली में ये उभरती हुई खिलाड़ी की हालत ऐसी नही है कि वह आगे खेल सके, क्योंकि वह चन्दे की पैसो से देश के कोने कोने में खेलने जाती है और मेडल भी जीत कर लाती है। घर में मां उसकी किसी तरह सिलाई का काम करके बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रही है और सबा खेल के मैदान में आगे जाना चाहती है लेकिन माली हालत इतनी खराब है कि उसको लोगों से चन्दा मांग कर खेलने जाने की फीस और किराया मिलता है। तब वह मेडल जीत पाती है। लेकिन सरकार ऐसे खिलाड़ियों के लिये पैसे क्यों नही देने की कोशिश करती है। जुलाई माह में दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में हुई नेशनल चैंपियनशिप में उसने सिल्वर मेडल जीता।