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सियासत में रायबरेली अव्वल, पर्यटन में हाल बेहाल

locationरायबरेलीPublished: Dec 27, 2017 04:24:55 pm

Submitted by:

Prashant Srivastava

रायबरेली के पर्यटन स्थलों का हाल बेहाल है।

Raebareli

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माधव सिंह, रायबरेली . भले ही रायबरेली को देश की सियासत में अहम माना जाता हो लेकिन यहां के पर्यटन स्थलों का हाल बेहाल है। हालत यह है कि कभी देश के प्रमुख स्थलों में शामिल पौराणिक स्थल से लेकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की याद में बना शहीद स्मारक और पार्क बजट की कमी का शिकार है। समसपुर पक्षी बिहार, पौराणिक नगरी डलमऊ, बेहटा पुल या फिर इंदिरा गांधी वानस्पतिक उद्यान सभी की दशा एक जैसी ही है। कभी विदेशी पक्षियों से गुलजार रहने वाला समसपुर पक्षी बिहार में आज उपेक्षित है। टूरिस्टों की कौन कहे क्षेत्र के लोग भी जाना नहीं पसंद करते है। बदहाली के कारण आज पर्यटकों का रुझान इन पर्यटन स्थलों से कम होता जा रहा है।
एक वक्त पर समसपुर पक्षी बिहार में दूर-दूर से सैलानी आते थे लेकिन आज यहां कोई झांकने भी नहीं जाता। सलोन उचांहार मार्ग पर भोलागंज बाजार से करीब तीन किमी की दूरी पर समसपुर पक्षी बिहार है। यहां पर यूरोप व साइबेरियन देषों की करीब 300 प्रजातियों के पक्षी अक्टूबर से जनवरी माह तक प्रवास करते थें। छह झीलों से बना पक्षी बिहार उपेक्षित पड़ा है। यहां पर पहुंचने वाली सड़क गडढ़ों में तब्दील है। झील में जलकुंभी फैली हुई है। पक्षियों की संख्या भी दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। पर्यटकों के लिए खोली गई कैंटीन भी विगत कई साल से बंद पड़ी है। पर्यटकों को मात्र एक इंडिया मार्का हैडपंप का पानी पीने को मजबूर होना पड़ता है। सलोन पक्षी बिहार में प्रतिमाह 200 से पर्यटक आते है। इससे सात से आठ हजार की राजस्व हो पाती है।
जिले में मुंशीगंज के सई नदी स्थित पुराना पुल पर 7 जनवरी 1921 को हुए गोलीकान्ड में शहीदों की स्मृति में बने स्मारक की उपेक्षा किसी भी छिपी नही है। इतिहासकारों ने इसे भले ही देष का दूसरा जलियावाला बाग गोलीकांड का दर्जा दिया हो। पर्यटन विभाग की ओर से बोर्ड तो लगा दिया गया । इसे सवांरने के लिए आरडीए ने एक बार पहल भी की। सूत्रों की मानें तो बजट की कमी के कारण आज यहां का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। यहां पर भारत माता का मंदिर भी बना है, लेकिन पर्यटकों के बजाए अराजक तत्वों का जमावड़ा रहता है।
रायबरेली के शहर में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 22 नवंबर 1988 को शहर के दक्षिणपूर्व में सई नदी के तट से लगे भूभाग पर इंदिरा गांधी वानस्पतिक उद्यान परियोजना का शुभारंभ कराया था। तब इसका कुल बजट 5.61 करोड़ था। इसमें निदेशक, सहायक निदेशक, जूनियर साइंटिस्ट बाटनी, हार्टीकल्टर वैज्ञानिकों सहित 73 लोगों का स्टाफ तैनात होना था, लेकिन चंद मजदूरों और एक दो स्टाफ के अलावा इसे देखने वाला कोई नही है। इसके रखरखाव की जिम्मेदारी वन विभाग के पास है। तमाम दुर्लभ वनस्पतियां नश्ट हो चुकी है, हरियाली ने पीली चादर ओड़ ली है, फूल मुरझा चुके है। यही नही उद्यान में बोटिंग पुल बदहाल है। बेंच टूटी पड़ी है। इसे 57.105 हेक्टेयर में बनना था । मात्र 16.092 हेक्टेयर भूमि अर्जित हो सकी । बजट के अभाव में मात्र 10 हेक्टेयर में उद्यान नही विकसित हुआ ।
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