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रायगढ़

चक्रधर समारोह : महफिल सजी रही और लोग झूमते रहे, सुगम संगीत और गजल की स्वर लहरियों ने श्रोताओं व दर्शकों का मोहा मन

 कथक घराने के रूप में लखनऊ, बनारस और जयपुर को मान्यता प्राप्त है रायगढ़ घराना इन तीनों का मिश्रण है। 

रायगढ़Aug 28, 2017 / 01:08 pm

Shiv Singh

चक्रधर समारोह : महफिल सजी रही और लोग झूमते रहे, सुगम संगीत और गजल की स्वर लहरियों ने श्रोताओं व दर्शकों का मोहा मन

महाभारत के प्रसंग को प्रस्तुत करते कथक कलाकार श्रीपर्णा और सहयोगी।

रायगढ़. चक्रधर समारोह के तीसरी संध्या की शुरूआत कथक नृत्य से हुई। वहीं इसके बाद शास्त्रीय गायन और फिर अंतिम में हुसैन बंधुओं के गजल गायन ने समा बांध दिया। चक्रधर समारोह के तीसरे दिन रविवार की रात करीब 8.30 बजे कार्यक्रम की शुरुआत हुई। संसदीय सचिव व विधायक सुनीति राठिया के द्वारा दीप प्रज्जवलन के बाद कार्यक्रम आरंभ हुआ।
इसके बाद गुडग़ांव के दीपक अरोरा और श्रीपर्णा चक्रवर्ती ने अपने कला की प्रस्तुति दी। दोनो कलाकारों ने कथक नृत्य की शुरुआत गणेश व सरस्वती वंदना के साथ की। कथक नृत्य के माध्यम से कलाकारों ने महाभारत के द्रोपदी के चिरहरण के प्रसंग की प्रस्तुति दी। विदित हो कि उक्त दोनो कथक कलाकार जयपुर घराने से हें। दोनो कलाकारों ने जयपुर कथक घराने की शैली में कथक की प्रस्तुति दी। जिसे देख दर्शकों ने खूब सराहना की।
इसके बाद दूसरे कार्यक्रम में खैरागढ़ से आए कश्यप बंधु प्रभाकर एवं दिवाकर कश्यप ने शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी। शास्त्रीय गायन को भी सुनने के लिए दर्शक दीर्घा भरी पड़ी थी। लोगों ने शास्त्रीय गायन की काफी सराहना की। तीसरा कार्यक्रम जयपुर के गजल गायक उस्ताद अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन ने दी। हुसैन बंधुओं ने गजल गायन की शुरुआत गणेश वंदना से हुई। उन्होने कहा कि किसी भी काम को सफल करने के लिए गणेश जी की वंदना से मंगल होता है इसलिए गणेश वंदना से गजल गायन की शुरुआत की गई।
होने लगी गजलों की डिमांड- गणेश वंदना के बाद दर्शक दीर्घा से चर्चित गजलों के गायन के लिए डिमांड होने लगा। जिस पर हुसैन बंधुओं ने दर्शकों के मांग के हिसाब से गजल गाकर उसे पूरा करने का प्रयास किया। गणेश वंदना के बाद जब हुसेन बंधुओं ने मै हवा हूं .. से गजल गायन की शुरुआत की तो दर्शक दीर्घा से तालियों की गडग़ड़ाहट शुरू हो गई। देर रात तक चले गजल गायन में हुसैन बंधुओं ने समा बांधा रहा जिसके कारण दर्शक दीर्घा पुरी तरह से भरा हुआ नजर आया।
आज इन कार्यक्रमों की होगी प्रस्तुति- 33 वें चक्रधर समारोह के चौथे दिन सोमवार को मुम्बई के राकेश चौरसिया द्वारा बांसुरी वादन, कोलकाता की मधुमिता रॉय द्वारा कथक एवं जलालाबाद के अनीस साबरी द्वारा कव्वाली की प्रस्तुति दी जाएगी।
तीनों घरानों का मिश्रण है रायगढ़ का घराना– रायगढ़. कथक घराने के रूप में लखनऊ, बनारस और जयपुर को मान्यता प्राप्त है रायगढ़ घराना इन तीनों का मिश्रण है। हर क्षेत्र में समय को देखते हुए कुछ न कुछ परिवर्तन हो रहा है लेकिन रायगढ़ घराने में एक प्यूरिटी नजर आती है। उक्त कथन होटल जिंदल रिजेंसी में प्रेस वार्ता के दौरान कथक कलाकार श्रीपर्णा चक्रवर्ती ने कहा। हांलाकि इस दौरान यह भी कहा गया कि रायगढ़ घराने में तीनों का मिश्रण हैं।
विदित हो कि रायगढ़ घराने को अभी तक पूरी तरह से मान्यता नहीं मिल सकी है। वहीं राजा चक्रधर सिंह द्वारा लिखे गए ग्रंथ के बारे में पूछे गए सवाल पर दोनो ही कलाकारों ने कहा कि शिक्षा बांटने से और बढ़ती है और इसे बाहर आना चाहिए ताकि लोग इसे जानें और समझें।
होना चाहिए रियल्टी शो- अन्य कला के लिए रियल्टी शो का आयोजन होता है। लेकिन कथक और क्लासिकल के लिए नहीं होता है। इसके लिए भी होना चाहिए। वहीं उन्होने बताया कि प्रस्तुति देने के लिए मंच मिलना चाहिए चाहे मंच हो या फिर टीवी लेकिन गरीमा बरकरार रहना चाहिए, हम पीछे नहीं हटते हैं।
उल्टी बह रही गंगा तो कैसे टिकेगी यह परंपरा – अब उल्टी गंगा बह रही है ऐसे में गुरू-शिष्य परंपरा तो कम होगी ही उक्त कथन जिंदल गेस्ट हाउस में आयोजित एक प्रेस वार्ता में गजल गायक उस्ताद अहमद हुसैन एवं मोहम्मद हुसैन ने कहा। चक्रधर समारोह में शिरकत करने के लिए आए उस्ताद अहमद हुसैन एवं मोहम्मद हुसैन ने जिंदल गेस्ट हाउस में रविवार को रात ७ बजे प्रेस से चर्चा के दौरान गुरु-शिष्य परंपरा के कम होने की बात को लेकर उठे एक सवाल में बताया कि पहले गजल व शास्त्रीय संगीत को सिखने के लिए पहले लोग गुरुकुल जाते थे, लेकिन अब गुरु घर में जाकर सिखाते हैं। उन्हें घर पर बुलाया जाता है। इसके कारण उक्त रिवाज खत्म होता जा रहा है। गजल गायन के लिए उर्द पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है।
स्वर प्रधान होता है शास्त्रीय संगीत – दोनो कलाकरों ने प्रेस वार्ता के दौरान एक सवाल के जवाब में बताया कि शास्त्रीय संगीत स्वर प्रधान होता है और इसके उलट सुगम संगीत शब्द प्रधान होता है। इसके अलावा गजल में समय के हिसाब से राग व प्रस्तुति होती है। इसके आधार पर बंदिशे प्रस्तुत की जाती हैं।
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