पूरे प्रदेश में लिगानुपात में रायगढ़ जिला पिछड़ा हुआ है। इस जिले में बेटों की अपेक्षा बेटियों की संख्या काफी कम है। इस बात को लेकर दो साल पहले जिले को बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जिला घोषित किया था। इसके बाद जिला प्रशासन की ओर से समय-समय पर इस बात को लेकर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
जिला प्रशासन के इस अभियान में निगम ने भी हिस्सेदारी निभाई। लेकिन निगम की हिस्सेदारी दो तरह के कागजों तक की सिमटी हुई है। पहला कागज यह है कि नगर निगम ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का स्लोगन अपने हर दस्तावेज में उपयोग करती है। निगम से निकलने वाले हर दस्तावेज में यह स्लोगन लोगों को पढऩे के लिए मिलेगा। वहीं बेटियों को प्रोत्साहित करने की दिशा में निगम दूसरे तरह से ही कागजों में सिमटा हुआ है।
निगम ने चार साल पहले बजट में यह प्रावधान किया था, कि कामकाजी बेटियों के लिए हास्टल का निर्माण करेगा। ताकि कामकाजी बेटियां संबंधित हास्टम में सुरक्षित और सुव्यवस्थित रह सके। इसके लिए एक करोड़ का बजट भी प्रावधान किया गया था। लेकिन चार साल बितने के बाद भी यह प्रस्ताव अब तब मूर्तरूप नहीं ले सका है। पिछले साल अधिकारियों ने यह दावा किया था, इसका निर्माण करवाया जाएगा। लेकिन अब तक यह हास्टल मूर्तरूप नहीं ले सका।
हर साल लाया जाता है प्रस्ताव
खास बात यह है कि कामकाजी महिलाओं के लिए हास्टल बनाने का प्रस्ताव पूर्व महापौर महेंद्र चौहथा के कार्यकाल में लाया गया था। इसके बाद से हर साल इस प्रस्ताव को लाया जा रहा है। इस तरह करीब चार साल से लगातार इस प्रस्ताव को लाया जा रहा है। प्रस्ताव लाए जाने के बाद बजट भाषण के समय मेज थपथपा कर प्रस्ताव को स्वीकृति तो दे दी जाती है, लेकिन इसके बाद प्रस्ताव में किसी प्रकार से कार्रवाई नहीं होती। इसकी वजह से यह प्रस्ताव अभी तक बजट के एजेंडे से बाहर नहीं निकल सका।
हर दस्तावेज में स्लोगन
जब से जिले को बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जिला घोषित किया गया हैए तब से नगर निगम के दस्तावेज भी बदल गए हैं। निगम से निकलने वाले हर दस्तावेज में यह नारा अंकित रहता है। वहीं जब नगर निगम में बेटियों के लिए कुछ करने की बारी आती है तो निगम के अधिकारी सिर्फ आश्वासन ही देते हैं। यह स्थिति कामकाजी बेटियोंं के लिए हास्टल से स्पष्ट होता है।