कलक्टर की माने तो संजय भंसाली ने अपने नाम के बीच मेंं लीला शब्द का प्रयोग किया है जो उनकी मां का नाम है। जो यह बताता है कि बेटी, जो आगे चलकर बहन, पत्नी, बहू, मां व अन्य रिश्तों को सुशोभित करती है।
उसका महत्व हम सभी को समझाना होगा। जिस दिन हम इस सोच के साथ समाज को बदलने मतें सफल हो जाएंगे। उस दिप बालिका दिवस व बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम की कोई दरकार नहीं होगी। कलक्टर ने समाज में बेटियों को लेकर होने वाले भेदभाव की नीति पर कड़ा प्रहार किया।
24 जनवरी को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शपथ ली थी। जिसकी वजह से 24 जनवरी को बालिका दिवस मनाने की परंपरा है। ऐसे में, महिला बाल विकास विभाग ने पॉलिटेक्निक कॉलेज स्थित ऑडिटोरियम में बेटियों को जागरुक करने को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें कलक्टर शम्मी आबिदी, रायगढ़ विधायक रोशन लाल अग्रवाल, डीपीओ टिकवेंद्र जाटवार, महिला बाल विकास विभाग अधिकारी जगदेव प्रधान व अन्य मौजूद थे।
बच्चों को संबोधित करते हुए कलक्टर आबिदी ने करीब 30 मिनट तक मंच के जरिए दर्शक दीर्घा में बैठे बच्चों से बात कही। जिसमेंं उन्होंने बेटी बचाओ-बेटी पढाओ के नारे को बुलंद करते हुए बेटा व बेटी पर फर्क को मिटाने की वकालत की।
इसके लिए शासकीय विभाग ही नहीं बल्कि सभी को आगे आकर अपनी जिम्मेदारी समझने की बात कही। कलक्टर की माने तो जिस दिन बेटियों को लेकर हमारी सोच बदलेगा, उस दिन समाज भी बदल जाएगा। उसके बाद शासन को बालिक दिवस व बेटी बचाओ-बेटी पढाओ जैसे व्यापक स्तर पर होने वाले कार्यक्रम की दरकार ही नहीं है। यह कार्यक्रम सिर्फ इसलिए हो रहे है कि अभी भी हमारे समाज में बेटियों के प्रति रुढ़ीवादी सोच नहीं बदली है।