विभागीय जानकारी के मुताबिक बाघों के संरक्षण के लिए केंद्र ने 2019-20 में प्रदेश सरकार को 1193.29 लाख रुपए जारी किए थे, इनमें से 984.632 लाख रुपए वन विभाग को जारी चुके हैं। बावजूद इसके न तो इन्हें ढूंढा जा रहा है, न ही इन्हें बचाया जा रहा है। 9 दिसंबर 2019 को कांकेर में एक बाघ की खाल बरामद की गई थी। इसके पहले भी दो खाल मिल चुकी हैं। उधर 24 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई वन्यजीव बोर्ड की बैठक में बाघों के संरक्षण के लिए हुए निर्णयों पर अब तक अमल नहीं हुए है। इनमें प्रमुख रूप से बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा एनटीसीए की मदद ली जाएगी। मध्यप्रदेश से चार मादा और दो नर बाघों की रिकॉवरी करने, भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की मदद लेना और बाघों की मूवमेंट पर नजर रखने के लिए रेडियो कॉलर लगाना प्रमुख रूप से शामिल थे। मगर इनमें से किसी पर अमल नहीं हो पाया है।
वर्ष- बाघों की संख्या
2006- 26 2010- 26 2014- 46 2018- 19
चौथे चरण की गणना ही नहीं शुरू हो पाई- एनटीसीए ने सभी राज्यों को 15 अक्टूबर से बाघों की गणना के चौथे चरण को शुरू करने के निर्देश दिए थे। 15 मई तक इसकी रिपोर्ट मांगी थी। मगर छत्तीसगढ़ में इस निर्देश का पालन ही नहीं हो रहा है। जबकि ठंड और गर्मी का मौसम ही गणना के लिए उपयुक्त माना जाता है। गौरतलब है कि 2018 में तीन चरण की गणना पूरी होने के बाद देश में बाघों की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई, तो छत्तीसगढ़ में 60 प्रतिशत की कमी।
2014 और 2019 की गणना में बाघों की संख्या के जो आंकड़े सामने आए वे विश्वसनीय नहीं हैं। जहां तक चौथे चरण की गणना शुरू न होने का सवाल है, तो अफसरों से पूछता हूं।
मनोज कुमार पिंगुआ, प्रमुख सचिव, वन विभाग