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20 जुलाई को मनाया जाएगा हरेली, बन रहा सोमवती अमावस्या का संयोग, इस कार्य के लिए शुभ है यह दिन

locationरायपुरPublished: Jul 11, 2020 07:32:16 pm

Submitted by:

bhemendra yadav

सोमवार 20 जुलाई को हरेली पर्व सावन अमावस्या की तिथि पर मनाया जाएगा। इस दिन सोमवती अमावस्या का भी संयोग रहेगा। साथ ही इस दिन पितृ कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है।

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Hareli Festival 2021: सावन का पहला त्योहार हरेली महोत्सव में घर-घर पकेगी ठेठरी, खुरमी, किसान करेंगे ग्राम देवता की पूजा

रायपुर. छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच सबसे लोकप्रिय और सबसे पहला त्यौहार हरेली त्यौहार है। सोमवार 20 जुलाई को हरेली पर्व सावन अमावस्या की तिथि पर मनाया जाएगा। इस दिन सोमवती अमावस्या का भी संयोग रहेगा। हरेली के साथ सोमवती अमावस्या के इस संयोग को पितृ कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। पर्यावरण को समर्पित यह त्यौहार छत्तीसगढ़ी लोगों का प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण दर्शाता है। सावन मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह त्यौहार पूर्णत: हरेली का पर्व है इसीलिए हिंदी के हरियाली शब्द से हरेली शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है।

मूलत: किसानों का पर्व हरेली
किसानों का यह त्यौहार उनकी औज़ार पूजा से शुरू होता है, किसान आज काम पर नहीं जाते घर पर ही खेत के औजार व उपकरण जैसे नांगर, गैंती, कुदाली, रापा इत्यादि की साफ-सफाई कर पूजा करते हैं साथ ही साथ बैलों व गायों की भी इस शुभ दिन पर पूजा की जाती है।

इस त्यौहार में सुबह – सुबह घरों के प्रवेश द्वार पर नीम की पत्तियाँ व चौखट में कील लगाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि द्वार पर नीम की पत्तियाँ व कील लगाने से घर में रहने वाले लोगो की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती हैं ।
हरेली में ग्रामीणों द्वारा अपने कुलदेवताओं का भी विशेष पूजन किया जाता है, विशेष पकवान जैसे गुड़ और चावल का चिला बनाकर मंदिरों में चढ़ाया जाता है।
छत्तीसगढ़ के गाँव मे तो इस पर्व की बड़ी धूम दिखती है साथ ही साथ शहरों में भी आपकों दरवाज़े पर नीम टाँगने की रस्म दिख ही जाएगी और खेती के अलावा अन्य मजदूरी करने वाले लोग भी आज काम पर नहीं जाते।

हरेली और उसके पीछे का अंधविश्वास
बारिश के मौसम में आए इस त्यौहार को कुछ लोग अंधविश्वास से जोड़ते है। जैसा कि आज के दिन घर के दरवाज़े पर नीम की पत्तियां लगाने और लोहे की कील ठोकने की परंपरा है। प्रदेश में ज़रूर इन परंपराओं का पालन यह बोल कर किया जाता है की इससे आपके घर से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती है। लेकिन इन परंपराओं के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण है।

बारिश के दिनों में गढ्ढो व नालों में पानी भर जाने से बैक्टीरिया, कीट व अन्य हानिकारक वायरस पनपने का खतरा पैदा हो जाता है और दरवाज़े पर लगी नीम और लोहा उन्हीं हानिकारक वायरस को घर मे घुसने से रोकने का काम करती है।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति में घर के बाहर गोबर लीपने की वैज्ञानिक वजह भी हानिकारक वायरस से बचना ही है। इसलिये छत्तीसगढ़ के पहले प्रमुख त्यौहार को अंधविश्वास से जोडऩा किसी मायने में सही नहीं। हरेली पर्व का मुख्य आकर्षण गेड़ी होती है जो हर उम्र के लोगों को लुभाती है। यह बांस से बना एक सहारा होता है जिसके बीच मे पैर रखने के लिए खाँचा बनाया जाता है। गेड़ी की ऊँचाई हर कोई अपने हिसाब से तय करता है कई जगहों पर 10 फिट से भी ऊँची गेड़ी भी देखने को मिलती है।
साल 2020 में करीब 16 सालों बाद छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले पारंपरिक पर्व ‘हरेली’ के दिन ‘सोमवती अमावस्या’ का संयोग बन रहा है। हरेली पर्व पर गांव-गांव में किसान अपने खेत-खलिहानों में कृषि औजारों की पूजा करते हैं और सोमवती अमावस्या पर भोलेनाथ के भक्त विशेष आराधना करते हैं। चूंकि हरेली के दिन ही 20 जुलाई सोमवार और अमावस्या तिथि एक साथ पड़ रही हैं, इसलिए इस बार खेत-खलिहानों में पूजा से लेकर शहर के भव्य मंदिरों में शिवभक्ति का नजारा दिखाई देगा।

पुरुषोत्तम मास वाले सावन में बना था संयोग
16 साल बाद सावन महीना में सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है। 20 साल पहले वर्ष 2000 में सोमवती अमावस्या थी। इसके बाद 2004 में सावन महीने को पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) के रूप में मनाया गया था, यानी उस साल दो बार सावन महीना पड़ा था। दूसरे सावन महीने में सोमवती अमावस्या का संयोग बना था।

पितृ पूजा का विशेष महत्व
सावन महीने में पड़ रही सोमवती अमावस्या पर भगवान भोलेनाथ के साथ ही पितृ पूजा करने से पितृ दोष दूर होने की मान्यता है। जाने-अनजाने में जो गलती हो, उसके लिए पितरों से क्षमा मांगनी चाहिए। साथ ही सूर्यदेव को जल अर्पण करके तुलसी पौधे की 108 परिक्रमा करनी चाहिए।

सालों में एक बार आती है सोमवती अमावस्या
हिंदू पंचाग के अनुसार हर महीने एक अमावस्या आती है परंतु सोमवार के दिन अमावस्या तिथि का संयोग सालों में कभीकभार बनता है। यह संयोग स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन नदियों, तीर्थों में स्नान, गोदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र दान करना पुण्य फलदायी माना जाता है।

लगेगी नारियल की बाजी
लोकपर्व के लिए लोक खेलों की भी परंपरा है। इससे जगह-जगह नारियल की बाजी लगेगी। इसके साथ ही कबड्डी, कुश्ती, फुगड़ी, खो-खो, कबड्डी, बिल्लस, ग़ेंडी दौड़ समेत अन्य पारंपरिक खेलों का आयोजन होगा। इस दिन ग़ेंडी बनेगी। इसका लोग आनंद लेंगे और इसे एक महीने बाद पोला के दिन ठंडा किया जाएगा।

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