वर्ष 2003 में जब जोगी की सरकार थी और भाजपा यह प्रचारित करने में कामयाब थी कि जोगी एक राजनेता से ज्यादा नौकरशाह है तब दिलीप सिंह जूदेव ने यह कहते हुए अपनी मूंछे दांव पर लगा दी थी कि अगर भाजपा सरकार नहीं बना पाई तो वे अपनी मूंछे उड़वा देंगे। जूदेव के मूंछों को दांव पर लगाने के बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई थी। हर कोई यह जानना चाहता था कि जूदेव ने अपनी प्रिय मूंछों को दांव पर क्यों लगाया है। उन दिनों (अब भी) तात्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी मूंछ नहीं रखते थे। राजनीतिक प्रेक्षक मूंछ पर दांव लगाने का यही अर्थ लगाते थे कि जूदेव भी जोगी के समान हो जाएंगे। अर्थात सफाचट रहेंगे।
के चुनाव में जोगी ने स्कूलों में बस्ता बंटवाया तो उन्हें जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था। यह चुनाव भाजपा और जोगी की टक्कर के बजाय जूदेव और जोगी की टक्कर के लिए याद किया जाता है। इस चुनाव में परिदृश्य कुछ ऐसा बन गया था कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो जूदेव ही मुख्यमंत्री बनेंगे, लोकिन नवम्बर 2003 में एक स्टिंग आपरेशन में जूदेव कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए फंस गए और मुख्यमंत्री पद से उनकी दावेदारी खत्म हो गई।
जूदेव के एक पुत्र युद्धवीर सिंह फिलहाल विधायक है। वे जूदेव ही थे जिन्होंने अपनी ही सरकार में यह कहते हुए सनसनी फैला दी थीं कि प्रदेश में प्रशासनिक आतंकवाद कायम हो गया है। जूदेव को जानने-समझने वाले मानते हैं कि अगर जूदेव जीवित रहते तो एक न एक बार वे प्रदेश के मुख्यमंत्री अवश्य रहते। जूदेव समर्थकों का कहना है कि 18 सालों से भाजपा की जो सरकार स्थिर बनी हुई है, उसके पीछे जूदेव की बहुत बड़ी भूमिका है।