राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने 2018-19 में राज्य के तीन टाइगर रिजर्व के लिए 536 लाख रुपए जारी किए, जबकि 2019-20 में 358.20 लाख की पहली किश्त जारी हो चुकी है। यानी एक बाघ पर सालाना 21 लाख खर्च हो रहे हैं। बावजूद इसके संख्या आधी से भी कम रह गई है।
कवर्धा के पंडरिया, भोरमदेव अभ्यारण्य के जामुन पानी, राजनांदगांव के बकरी टोला और उदंती सीतानदी अभ्यारण्य में एक नर बाघ का शिकार हुआ था। इनमें से एक भी आरोपी को सजा नहीं हुई। साक्ष्यों के अभाव में या तो ये बरी हो गए या जमानत पर हैं। जानकार मानते हैं कि इसके लिए पूरी तरह से वन विभाग ही जिम्मेदार है।
अतुल शुक्ला, पीपीसीएफ, वाइल्ड लाइन, वन विभाग
अपराध तो होते ही रहेंगे? बीते नौ साल में 21 बाघों का शिकार हुआ है। वन विभाग शिकार पर रोक नहीं लगा पा रहा?
जब तक मानव हैं तो अपराधी प्रवृति के लोग रहेंगे। आप देखिए, बलात्कार, हत्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हां,अपराधियों के अंदर अगर खौफ पैदा हो जाए कि कड़ी कार्रवाई होगी, तो कहीं जाकर अपराध का ग्राफ गिरेगा।
? बीते चार मामलों में तो वन विभाग शिकारियों के विरुद्ध ठोस साक्ष्य ही पेश नहीं कर पाया, इसलिए अपराधी जमानत पर हैं?
न्यायपालिका पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। मैं यह जरूर स्वीकार करता हूं कि इंद्रावती में नक्सली भय है, जिसके कारण वन विभाग की सक्रियता वहां नहीं है। इसलिए वह क्षेत्र शिकारियों का सॉफ्ट कॉर्नर बना हुआ है।