scriptनौ सालों में प्रदेश में 21 बाघों और 50 से अधिक तेंदुओं की खाल मिली, पुलिस-वनकर्मियों व शिकारियों की सांठगांठ का खेल | 21 tigers and 50 leopard skins have been recovered in the state | Patrika News

नौ सालों में प्रदेश में 21 बाघों और 50 से अधिक तेंदुओं की खाल मिली, पुलिस-वनकर्मियों व शिकारियों की सांठगांठ का खेल

locationरायपुरPublished: Dec 10, 2019 06:36:20 pm

खतरे में बाघ: इंद्रावती टाइगर रिजर्व के बाघ की थी कांकेर से पकड़ी गई खाल, शिकारियों को पकड़कर पीठ थपथपा रहे वन विभाग के पास शिकार रोकने की रणनीति नहीं

नौ सालों में प्रदेश में 21 बाघों और 50 से अधिक तेंदुओं की खाल मिली, पुलिस-वनकर्मियों व शिकारियों की सांठगांठ का खेल

नौ सालों में प्रदेश में 21 बाघों और 50 से अधिक तेंदुओं की खाल मिली, पुलिस-वनकर्मियों व शिकारियों की सांठगांठ का खेल

रायपुर. प्रदेश में बाघ सुरक्षित नहीं हैं, खुद वन विभाग इसे स्वीकार कर रहा है। माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में जहां-जहां बाघों की आवाजाही है, वहां सरकारी तंत्र की मौजूदगी नहीं है, या नाकाफी है। वन विभाग के अफसर जंगलों में जाने से भय खाते हैं। यही वजह है कि यहां शिकारी बेखौफ होकर शिकार कर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक बीते नौ सालों में प्रदेश में २१ बाघों और ५० से अधिक तेंदुओं की खाल बरामद हो चुकी है। अब तो स्थिति यह है कि वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए तैनात वनकर्मी और हमारी सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस वाले वन्य जीवों के शिकार और तस्करी में शामिल पाए जा रहे हैं।
कांकेर में जिस बाघ की खाल बरामद की गई वह इंद्रावती टाइगर रिजर्व का है। इस क्षेत्र में माओवादियों के डर से वन अमला जंगल के अंदर दाखिल ही नहीं हुआ। इसलिए यहां कितने बाघ हैं, उनका कॉरीडोर क्या है? इसकी पुख्ता जानकारी भी वन विभाग के पास नहीं है। यहां कैमरा ट्रैपिंग भी नहीं की गई। अब तो वन्य प्राणी विशेषज्ञ, वन्य प्रेमी यह सवाल भी खड़ कर रहे हैं कि जो 19 बाघ बचे हैं क्या वे सुरक्षित हैं? बता दें कि छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या 2014 की तुलना में 2018 में 60 फीसद घटी है। इसकी मूल वजह शिकार ही है।
एक बाघ पर सालाना खर्च 21 लाख रुपए
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने 2018-19 में राज्य के तीन टाइगर रिजर्व के लिए 536 लाख रुपए जारी किए, जबकि 2019-20 में 358.20 लाख की पहली किश्त जारी हो चुकी है। यानी एक बाघ पर सालाना 21 लाख खर्च हो रहे हैं। बावजूद इसके संख्या आधी से भी कम रह गई है।
इन बाघों के हत्यारे जमानत पर
कवर्धा के पंडरिया, भोरमदेव अभ्यारण्य के जामुन पानी, राजनांदगांव के बकरी टोला और उदंती सीतानदी अभ्यारण्य में एक नर बाघ का शिकार हुआ था। इनमें से एक भी आरोपी को सजा नहीं हुई। साक्ष्यों के अभाव में या तो ये बरी हो गए या जमानत पर हैं। जानकार मानते हैं कि इसके लिए पूरी तरह से वन विभाग ही जिम्मेदार है।
सीधी बात
अतुल शुक्ला, पीपीसीएफ, वाइल्ड लाइन, वन विभाग
अपराध तो होते ही रहेंगे? बीते नौ साल में 21 बाघों का शिकार हुआ है। वन विभाग शिकार पर रोक नहीं लगा पा रहा?
जब तक मानव हैं तो अपराधी प्रवृति के लोग रहेंगे। आप देखिए, बलात्कार, हत्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हां,अपराधियों के अंदर अगर खौफ पैदा हो जाए कि कड़ी कार्रवाई होगी, तो कहीं जाकर अपराध का ग्राफ गिरेगा।
? बीते चार मामलों में तो वन विभाग शिकारियों के विरुद्ध ठोस साक्ष्य ही पेश नहीं कर पाया, इसलिए अपराधी जमानत पर हैं?
न्यायपालिका पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। मैं यह जरूर स्वीकार करता हूं कि इंद्रावती में नक्सली भय है, जिसके कारण वन विभाग की सक्रियता वहां नहीं है। इसलिए वह क्षेत्र शिकारियों का सॉफ्ट कॉर्नर बना हुआ है।
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