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अंधत्व मुक्त प्रोजेक्ट में २५१ को मिली रोशनी, ८१८ वेंटिंग में

locationरायपुरPublished: Dec 06, 2019 11:49:14 am

Submitted by:

abhishek rai

20२२ तक तय किया गया है लक्ष्य, एक साल चलेगा फॉलोअप, 2016 से प्रदेश में चल रहे सर्वे में १०६९ मरीजों की हुई थी पहचान
 

अंधत्व मुक्त प्रोजेक्ट में २५१ को मिली रोशनी, ८१८ वेंटिंग में

अंधत्व मुक्त प्रोजेक्ट में २५१ को मिली रोशनी, ८१८ वेंटिंग में

रायपुर. प्रदेश में वर्ष २०१६ से अंधत्व मुक्त (कार्नियल ब्लाइडनेस फ्री) प्रोजक्ट चल रहा है। इसके तहत संपूर्ण अंधेपन के शिकार १०६९ व्यक्तियों की न सिर्फ पहचान हुई थी बल्कि सूचीबद्ध कर इनकी सर्जरी भी शुरू की गई थी। अप्रैल 201६ से ३१ मार्च 201९ तक १०७२ नेत्र दान हुए हैं। लेकिन, इनमें से सिर्फ २५१ मरीजों का ही अब तक कार्निया ट्रांसप्लांट हो सका है। प्रदेश को वर्ष २०२२ तक अधंत्व मुक्त राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एक साल फालोअप चलेगा। विशेषज्ञों के अनुसार दान में मिले नेत्रों में से १० से ४० प्रतिशत ही कार्निया ऐसे होते हैं, जिन्हें दूसरे में लगाया जा सकता है। बताया जाता है कि प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए प्रदेश के ७ निजी अस्पतालों से भी अनुबंध किया गया है और इन्हें जिले बांटे कर मरीजों की सूची सौंपी गई है। यहीं के डॉक्टर सूचीबद्ध मरीजों को कॉल कर बुलवाते हैं और ट्रांसप्लांट करते हैं।बाहर से कार्निया मंगाने को मंजूरीअधंत्व मुक्त राज्य बनाने का लक्ष्य तय समय में पूरा करने के लिए राज्य स्वास्थ्य विभाग अंतर्गत राज्य अंधत्व निवारण समिति ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को २०१६ में प्रस्ताव भेजा था, जिसको मंजूरी मिल गई है। बाहर से भी कार्निया मंगाकर लगाया जा रहा है। एक कार्निया मंगाने में सिर्फ ६ हजार रुपए खर्च होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह राशि किसी भी मरीज के जीवन में रोशनी लौटाने के लिए बहुत ही छोटी है।
प्राथमिकता के आधार पर लाभ
कार्निया ट्रांसप्लांट पीडि़त की स्थिति को देखकर किया जाता है। पहले उनको प्राथमिकता दी जाती है जिनकी दोनों आंखें नही हैं यानी पूरी तरह से अंधेपन के शिकार है। दूसरे उन्हें जो ५० साल से कम हो या फिर रजिस्टर्ड मरीजों में तुलनात्मक कम हो। अंतिम में उनको प्राथमिकता मिलती है जिनपर ट्रांसप्लांट से परिणाम दूसरों की तुलना में बेहतर हो सकते हों।
लोगों में व्याप्त हैं भ्रांतियां
विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ लोगों में भ्रम रहता है कि अस्पताल दान के नेत्र ले जाते हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं करते। ऐसा नहीं है, जरूरी नहीं है कि जिस व्यक्ति का नेत्र दान हुआ है वह संपूर्ण बीमारियों से मुक्त हो। कई बार कार्निया ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त नहीं होता, तो उसे मेडिकल कॉलेज में शोध के लिए रखा जाता है। यह व्यर्थ नहीं जाता। नेत्र दान में आंख नहीं निकाली जाती, सिर्फ कार्निया निकाला जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कहा जाता है कि मृत्यु उपरांत नेत्र दान होने से दूसरे जन्म में व्यक्ति अंधा पैदा होता है, जो सिर्फ भ्रांति है।
५ साल में हुए नेत्र दान
वर्ष आई डोनेशन
२०१४-१५ २३८२०
१५-१६ २८२२०
१६-१७ ३३४२०
१७-१८ ३७८२०
१८-१९ ३६०

दो साल में ट्रांसप्लांट के आंकड़े
वर्ष कार्निया ट्रांसप्लांट
२०१७-१८ १३६२०
१८-१९ ११५३

साल की सर्वे के बाद अंधेपन के शिकार मरीजों की सूची बनाई गई थी। जितना नेत्र दान होता है उसमें से १० से ४० फीसदी कार्निया सही होती है। अन्य राज्यों की तुलना में यहां की स्थिति बेहतर है। तय समय तक लक्ष्य को पूरा कर लेंगे। स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर ७ अस्पताल प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।
डॉ. सुभाष मिश्रा, राज्य नोडल अधिकारी, अंधत्व निवारण समिति
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