कार्निया ट्रांसप्लांट पीडि़त की स्थिति को देखकर किया जाता है। पहले उनको प्राथमिकता दी जाती है जिनकी दोनों आंखें नही हैं यानी पूरी तरह से अंधेपन के शिकार है। दूसरे उन्हें जो ५० साल से कम हो या फिर रजिस्टर्ड मरीजों में तुलनात्मक कम हो। अंतिम में उनको प्राथमिकता मिलती है जिनपर ट्रांसप्लांट से परिणाम दूसरों की तुलना में बेहतर हो सकते हों।
विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ लोगों में भ्रम रहता है कि अस्पताल दान के नेत्र ले जाते हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं करते। ऐसा नहीं है, जरूरी नहीं है कि जिस व्यक्ति का नेत्र दान हुआ है वह संपूर्ण बीमारियों से मुक्त हो। कई बार कार्निया ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त नहीं होता, तो उसे मेडिकल कॉलेज में शोध के लिए रखा जाता है। यह व्यर्थ नहीं जाता। नेत्र दान में आंख नहीं निकाली जाती, सिर्फ कार्निया निकाला जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कहा जाता है कि मृत्यु उपरांत नेत्र दान होने से दूसरे जन्म में व्यक्ति अंधा पैदा होता है, जो सिर्फ भ्रांति है।
वर्ष आई डोनेशन
२०१४-१५ २३८२०
१५-१६ २८२२०
१६-१७ ३३४२०
१७-१८ ३७८२०
१८-१९ ३६० दो साल में ट्रांसप्लांट के आंकड़े
वर्ष कार्निया ट्रांसप्लांट
२०१७-१८ १३६२०
१८-१९ ११५३ साल की सर्वे के बाद अंधेपन के शिकार मरीजों की सूची बनाई गई थी। जितना नेत्र दान होता है उसमें से १० से ४० फीसदी कार्निया सही होती है। अन्य राज्यों की तुलना में यहां की स्थिति बेहतर है। तय समय तक लक्ष्य को पूरा कर लेंगे। स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर ७ अस्पताल प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।
डॉ. सुभाष मिश्रा, राज्य नोडल अधिकारी, अंधत्व निवारण समिति